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Showing posts from October, 2009
हर रोज एक नया गम दो मुझे गमों  की आदत है आज  ये पास नही..... ....  ! ये क्योकर मुझसे दुर है बस पत्थर ही मारों दोस्तो न ही मैं नूर हूं न  ही सरूर हू! कही उठा कर एक कोने में रख दो दोस्तों किसी की ग़ल्तियाँ और माफ़ी ?  जमी मेरे किस काम की! दूर फलक पर घर बना दो मुझे एक चादर सिला दो आओ गले लगा लू तुम्हें! पल भर भी दुर न हो क्या ढुढता है अब ये दिल साया भी जुदा हो चुका है दोस्तों ! उसके सितम की कोई हद तो होगी,अब तो सितमों शह ढूढंता हू दोस्तों........!               -----------
आज फिर दिल रोया है बार-बार छलछलाते अश्क कह देते हर बात जख़्मी सांस, क्यो फरेब सहता है मन? क्या है रोक लेता है जो कदमों को  बार-बार किस तरह खेलते है लोग दिलों से कर देते है बस चकनाचुर आज फिर गमों का दौर आया है  हसरतों का टूटना ,बिखरना  मरना फिर जी लेना  ख़ुशियों क्यों छीन लेते है लोग क्यों नही समझ पाता कोई मन?    आज फिर दिल टुटा है यहां आवाज़ नही साज़ नही खामोशी ओर बस  घुटन....................              ---------

तुम !

हौले से आकर जगा देते हो मुझे ख्वाब में ही सही,उपस्थित दिखा देते हो तुम तुम जो अरमान थे, तुम जो जीवन थे! आज जो अभिशाप बन गये हो तुम हौले से आकर कानों में कुछ कहते हो तुम बुदबुदाते शब्द बनते जाते कहर! उपर एक आसमां, क्या तलाशतें हो तुम हौले से चैन छीन लेते हो तुम झुठे ही सही ,तसल्ली दे जाते हो तुम ! तुम जो विश्वास थे, छल जो बन गये तुम क्या करे अब परिभाषित, भुल जाओ तुम  प्रेम जो सच था उसे खो  चुके तुम !           _________

क्यों रिश्तों से ठोकरे खा रहे है हम.....?

क्यों रिश्तों से ठोकरे खा रहे है हम किन लोगो मे जीवन गुजारते है हम रिश्ते जो सिर्फ देते है दर्द उन रिश्तों  क्या सोच निभा रहे है हम खुन जो हो जाता है  पानी है  क्षणिक स्वार्थ कर देता है सब होम दुहाई देते रहे बस, क्या मेरा क्या पराया क्यो रिश्तों को तिथियों में बांध देते है हम झलकता जो प्रेम आंखों से नफरत कैसे सह पाते हम क्यों रिश्तों को रो लेते है हम  इन्सानों की इस दुनिया में  लेन देन कर बना लेते फरेब की एक दुनिया दुनियादारी का नाम ले रिश्तों को तोल लेते हम  क्यों रिश्तों के नाम पर ठोकरे खा रहे है हम जो आज है वो कल न होगा  तकलीफों को सहन कर क्यों जिये जा रहे है हम।                 ____________

कुछ कहता दिया बाती संग

कुछ कहता है दिया बाती से कुछ कहती बाती दिये से ! दोनो ही जलते तपते है साथ जलते साथ बुझते  अनबुझ एक पहेली से   दिया रोशन बाती संग बाती रोशन दिये संग ! अलग हो जैसे अंधेरे से  निश्वान जैसे  प्राण बिन एक साथ जलना नियती इनकी  न करो अलग दिये संग बाती को  दिया झिलमिल बाती संग झिलमिल दीपकतार! साथ दोनो यूं दमकते  लगते  टिम टिम जुगनू से  मुस्कुराता मानो देख बाती को  दिया है मानो बाती रंग न करो अलग दिये संग बाती को !       ____________

एक ख्याल हुं मै ।

कोई मुझसे कहे कौन हुं मै, एक ख्याल हुं बस ख्यालो का काई नाम नही़, नही कोई रंग रूप के बस ख्याल हूं मै कभी आना कभी जाना, है फितरत इसकी ख्याल का कोई नाम नही, नही रंग रूप  के बस एक ख्याल हुं मै कोई मुझसे कहे तेरी चाहत क्या है बस दफन होना  न पूछे कोई मेरा हाल क्या है के बस ख्याल हूं मै झूठ फरेब की इस दूनिया मै कोई हिमाकत करू ऎसी नही औकात मेरी कोई मुझसे पुछे कहां है घर मेरा  वो बसेरा ठुकरा दिया हमने के बस ख्याल हूं मै। ख्यालों का कोई पडाव नही टुटना बिखरना जन्म उनका फिर क्यू शिकायत  ख्याल का कोई नाम नही , नही रंग रूप के बस एक ख्याल हूं मै जाने अन्जाने ही आ जाऊ दिल में तो अफसोस न करना  इतनी जल्दी मिट न पायेगी हस्ती मेरी रह रह कर कचोटना है आदत मेरी के बस एक  ख्याल हुं मै बन्द कर लो अपनी आंखे हाजिर मुझे पाओगे तुम कहो और मै चला जाऊ तुम्हारे जहन के सिवा कहां है बसेरा मेरा, कह दो चला जाउगा गल्ती से फिर आ जाऊ तो मुझे कुछ न कहना के बस एक ख्याल हुं मै।                                      ________________

बेझिझक सी तरन्नुम में यह दौर कैसा है....

बेझिझक सी तरन्नुम में ये दौर कैसा है क्या सोचे हम क्या कहे अब सब कुछ फीका है। मायुस होता है मन है बेचैन भी देख खाली हाथों को कितने व्याकुल है हम बेबसी को क्या दूसरा नाम दूं जो नही अपना उसे कैसे अपना कहु क्या सोचे क्या कहे हम अब सब कुछ फीका है । आरजू क्या चाहती है देख ये पागलपन न कहो उसको कुछ भी वो एक भंवरा है उसकी आंखो की चमक को क्या नाम दे हम लुटाने बैठा है जो अपनी हस्ती आज रोक लो उसको बर्बादियों के कहर से क्या सोचे क्या कहे हम अब सबकुछ फीका है।

पलकें क्यों झुक जाती है?

पलकें क्यों झुक जाती है क्यों बुदें झलक जाती है? कहते ही शब्द बोझिल होता है, मन फिर खामोश होता है कही कोई अंर्तमन मीलों तलक लम्बी दूरी.............. देखो आेसं सी छलक आयी है मेरा दामन उडने लगा बस युं ही कह दुं क्या तोड के सारे बन्धन? इन्द्रधनुष सा है मन संतरगी ख्वाब दुर तक............ चुप क्यू हो ,दिन फिर न होगा ये उडते बादल खो जायेगे रहेगा विश्राम यू ही? तेरे मेरे बीच के भेद शोर मचायेगे दूर तलक............      __________