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Showing posts from November 15, 2009
कुछ भी न कह कर बहुत कुछ कह जाते है सबने सताया जी भर कर, अब तो गमों  को भी शर्म आती है हम पर! आदत जो होती है उसे मिटा ना कैसे कत्ल होता है अरमानों का देखो फितरत दूनिया कितनी मासूम है ! बांध  कर हाथों को क्या तलाश है वो मुकाम कहा रास्ता कहां कुछ भी न कर कह कर बहुत कुछ कह जाते है। हमने बना दिया मूरत को भी इन्सा  है काफी दम खम हममें वो छीन लेता है हर खुशी मुझसे  कैसा  हमसफर है मेरा मार डालता है कहकर, जिन्दगी  दे रहा हूं तूझे !