Skip to main content

कुछ कहता दिया बाती संग

कुछ कहता है दिया बाती से कुछ कहती बाती दिये से !
दोनो ही जलते तपते है
साथ जलते साथ बुझते 
अनबुझ एक पहेली से
  दिया रोशन बाती संग बाती रोशन दिये संग !
अलग हो जैसे अंधेरे से 
निश्वान जैसे  प्राण बिन
एक साथ जलना नियती इनकी 
न करो अलग दिये संग बाती को
 दिया झिलमिल बाती संग झिलमिल दीपकतार!
साथ दोनो यूं दमकते 
लगते  टिम टिम जुगनू से 
मुस्कुराता मानो देख बाती को
 दिया है मानो बाती रंग
न करो अलग दिये संग बाती को !
      ____________

Comments

  1. दिया और बाती का यह संगम ही प्रकाश का जनक है । आपको दिवाली की शुभकामनायें ।

    ReplyDelete
  2. मुझे दुष्यंत जी का शेर याद आ गया " एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों /इस दिये मे तेल से भीगी हुई बाती तो है ।

    ReplyDelete
  3. शरद जी,
    मुझे आपका ब्लाग पुरात्ववेत्ता बहुत अच्छा लगता है मुझे खुद भी पुरानी विरासतों सभ्यताओ का समझने जानने का शौक है ऎसी ही कोशिशे मैने दैनिक जागरण मे लेखन के दौरान की थी मेरी आने वाली पोस्ट भी कुछ ऎसे ही तथ्यों को उजागर करने का प्रयास भर है। नजर डालते रहिएगा साथ ही सुझाव भी।......
    http://sunitakhatri.blogspot.com

    ReplyDelete
  4. बहुत अच्‍छा, प्रत्‍येक पंक्तियां कुछ कह रही हैं, झक्‍कास। अच्‍छा लिखा है।
    सुनील पाण्‍डेय
    इलाहाबाद
    09953090154

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

तुम ही तो हो !!

************ कहाँ जाऊ तेरी यादों से बचकर हर एक जगह बस तू ही है तेरा प्यार तेरा एकरार, तेरी तकरार हरदम मुझमें समाया है मेरी रूह में बस तेरा ही साया है, हमसफर बन साथ निभाना था बीच राह में ही छोड दिया तन्हा मुझकों दिन ढलते ही तेरी यादें मुझे घेर लेती है तू ही है हर जगह ............. हवायें भी यही कहती है क्यो लिया लबों से मेरा नाम जब मुझसे दूर ही जाना था | फिर हमसे न जीया जायेगा तेरे बिन जिन्दगी का जहर  न पीया जायेगा, मासूम है  यह दिल बहुत... हर लम्हा तूझे ही याद करता जायेगा | ##
लिफाफे में रखे खत का कोई वजुद नही होता ......... अनकही कहानी उधडते रिश्तों की जबान नही होती दर्द सिर्फ सहने के लिए होता है दर्द की कोई हद नही अब फीकी हंसी हंसते है लब खुद को कहां अधेरों में तलाश करते है खेल जो समझे जिन्दगी को उनको रोको जिन्दगी खेल नही लहुलुहान करते है शब्द शब्दों से चोट न करो जो कुछ मौत के करीब है वो कितना खुशनसीब है कोई तो गले लगाने की ख़्वाहिश रखता है जो दे सके सिर्फ खुशी यह जरूरी तो नही गुलाब भी कांटों संग रहता है नही करता कांटो से शिकायत कोई सुखे किताबों में पडे फूलों से क्या महक आती है इतने संगदिल कैसे होते लोग खुदा से डर न कोई खौफ होता है लिफाफों में रखे खतो का कोई वजुद नही होता....... इस जहां में किसे अपना कहे अपनों से परायों की बू आती है तडपतें जिनके लिए उनका कुछ पता नही होता सचमुच बंद लिफाफों में रखे खतो का कोई वजुद नही होता...........। ...........

टूटे रिश्तों की खनक........।

खत्म होते रिश्ते को जिन्दा कैसे करू जो रूठा है उसे कैसे मना पाउ कहुं कैसे तू कितना अजीज है सबका दुलारा प्यारा भाई है याद आते वो दिन जब पहली बार तू दूनिया मे आया हम सबने गोद में उठा तूझे प्यार से सहलाया रोते रोते बेदम तूझ नन्हे बच्चे को मां के कपडे पहन मां बन तूझे बहलाया कैसे बचपन भूल गया आज  बडा हो गया कि बहनों का प्यार तौल गया सौदा करता बहनों से अपनी अन्जानी खुशियो का वह खुशियां जो केवल फरेब के सिवा कुछ भी नही जख्मी रिश्ते पर कैसे मरहम लगाउ । आंखे थकती देख राहे तेरी पर नही पसीजता पत्थर सा दिल तेरा बैठा है दरवाजे पर कोई हाथ में लिए राखी का एक थागा, आयेगा भाई तो बाधूगी यह प्यार का बंधन वह जो बंधन से चिढता है रिश्तों को पैसो से तौलता है आया है फिर राखी का त्यौहार फिर लाया है साथ में टूटे रिश्तों की खनक.....................। जान लो यह धागा अनमोल है प्यार का कोई मोल नही इस पवित्र रिश्ते सा दूनिया में रिश्ता नही ................।                .....................