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तुम !

हौले से आकर जगा देते हो मुझे
ख्वाब में ही सही,उपस्थित दिखा देते हो तुम
तुम जो अरमान थे, तुम जो जीवन थे!



आज जो अभिशाप बन गये हो तुम
हौले से आकर कानों में कुछ कहते हो तुम
बुदबुदाते शब्द बनते जाते कहर!


उपर एक आसमां, क्या तलाशतें हो तुम
हौले से चैन छीन लेते हो तुम
झुठे ही सही ,तसल्ली दे जाते हो तुम !


तुम जो विश्वास थे, छल जो बन गये तुम
क्या करे अब परिभाषित, भुल जाओ तुम 
प्रेम जो सच था उसे खो  चुके तुम !
          _________

Comments

  1. vaakai sirf tum sach adbhut

    http/jyotishkishore.blogspot.com

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  2. अभिव्यक्ति अच्छी है लेकिन इसे तराशने की ज़रूरत है ।कुछ अनावश्यक शब्द निकालकर देखिये इसका रूप निखर जायेगा ।

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  3. Shabd Chayan sunadar hai...Keep writing !!

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  4. बिना किसी लाग लपेट के की गई अभिव्यक्ति काफी सराहनीय है। अच्छा लगता है जब कोई दिल से लिखता है।

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  5. सीधी सादी और सच्ची रचना, सराहनीय प्रयास - शुभकामनाएं.

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