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Showing posts from February, 2010
जख्म अब हंसते है न जाने मुझसे क्या चाहते है। हंसी है लबों पर फीकी सी   मायूसियो के दौर रहते है जिन्दगी को खेल समझा खिसकते पल हाहाकार  करते है, थोडा ठहर जा वक्त अभी सांस तो ले लूं न बुलाओ मुझे  चन्द लम्हे तो जी लूं क्या है फलसफा जब चाहो तो नही मिलता  न चाहो तो सब कुछ पास तुम्हारे नियति तेरे खेल न्यारे  तुने खुब ठगा है अब जख्म मुझ पर ही चिल्लाते .............है

जिन्दगी ने जिन्दगी को क्या दिया........।

जिन्दगी ने जिन्दगी को क्या दिया नफरत और गम इसके सिवा कुछ न दिया ? वक्त तूं कब तक मेरा इम्तहान लेगा तेरे सबब का कही तो अन्त होगा रूसवा करे मुझे जमाना के वफा करने वाले के हिस्से , सिर्फ यही एक सौगात आती है जिन्दगी ने जिन्दगी को क्या दिया उलझन और परेशानी ? इसके सिवा कुछ न दिया मोड दो वक्त की धारा को कह देना होता है आसान सितम पर सितम तमन्नाओ की ख्वाहिशों की कीमत क्या होती है जिन्दगी ने जिन्दगी को क्या दिया ताउम्र का दर्द इसके सिवा कुछ न दिया...................।
चटकते है शीशे तो आवाज़ आती है  दिल टुटे तो खनक भी नही दस्तूर कैसा है यह इश्क का जिसे जिन्दगी कहो वही मौत का समान है, अपना लिया हर अन्दाज जिन्दगी का जीने के लिए यह क्यो कर जरूरी था वो कहता है साया हूं, है तो जुदा क्यों है? साये से कहो , दूर रहे नजदीकी का विलाप नही जुस्तजू है बस यह काई रूठे तो मना लेना  कही ताउम्र फिर रोना न पडे पायलो की खनखन मिलती नसीबों से, किसी घुंघरू को टूटने न देना ।