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तुम ही तो हो !!

************ कहाँ जाऊ तेरी यादों से बचकर हर एक जगह बस तू ही है तेरा प्यार तेरा एकरार, तेरी तकरार हरदम मुझमें समाया है मेरी रूह में बस तेरा ही साया है, हमसफर बन साथ निभाना था बीच राह में ही छोड दिया तन्हा मुझकों दिन ढलते ही तेरी यादें मुझे घेर लेती है तू ही है हर जगह ............. हवायें भी यही कहती है क्यो लिया लबों से मेरा नाम जब मुझसे दूर ही जाना था | फिर हमसे न जीया जायेगा तेरे बिन जिन्दगी का जहर  न पीया जायेगा, मासूम है  यह दिल बहुत... हर लम्हा तूझे ही याद करता जायेगा | ##
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हे कृष्ण, हे गोपाल !

🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼 हे कृष्ण , हे गोपाल , हे माधव किस नाम से पुकारू तुम्हे ! कान्हा , बांसुरी बैजया देवकी नन्दन , हे कैन्हया किस रूप में निहारू तुम्हे | हे पालनहार , हे जगत के रखवाले किस तरह पूँजू तुम्हे | तुम्हे माता हो तुम्ही पिता हो किस तरह रिश्तें में बाँधु तुम्हे | हे मदनमुरारी , हे यशोदा के लाल क्या कह प्रीत निभाऊ तुमसे तुमसे जीवन की आस तुम्हे खो कर जी न पांऊ मै | हे कृष्ण , हे गोपाल .... 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 ## सुनीता शर्मा खत्री ©

गूंजते है सन्नाटो में ......!!

अब वो बात कहा, जो कभी थी  गूंजते है सन्नाटो में  कह्कशे जोरो से  थी मुकमल कोशिस बस ....!! गमगीन सी है महफ़िल तेरी  वक्त कभी ठहरता नहीं  इंतजार कितना भी करो  जो आज है वो कल न होगा  जो कल होगा उसका बारे  क्या जान सका कोई कभी .....!!! परदे लाख डाल लो  सच  पंख पसारता ही है  फिर टूटते है मासूम दिल  लगती है तोहमते वफ़ा पर  अब यहाँ क्या पायेगा  लाशो और खंडरो में  अतीत को क्या तलाश पायेगा  रहा एक सदमा सही, पर  हुआ यह भी अच्छा ही   चल गया पता अपनों में गैरो का  सभी अपने होते तो गैर  कहा जाते  अब तन्हाई में ख़ुशी का दीप जलता नहीं  बस है सिसकियाँ...और वीरानिया  देखना है वफाएचिराग जलेगा कब तलक   जो था गम अब उसकी भी परवाह नहीं..... l

छलक पड़े.... तो प्रलय बन गए ......!!!

क्यों हो गयी शिव तुम्हारी जटाए कमजोर नहीं संभल पाई ........!!! वेग और प्रचण्डना को  मेरी असहनीय क्रोध के आवेग को  पुरे गर्जना से बह गया क्रोध मेरा  बनकर मासूमो पर भी जलप्रलय  मै............ सहती रही .निसब्द देखती रही  रोकते रहे मेरी राहे अपनी ... पूरी अडचनों से नहीं ,बस और नहीं  टूट पड़ा मेरे सब्र का बांध और तोड़  दिए वह सारे बंधन जो अब तक  रुके रहे आंसू के भर कर सरोवर  छलक पड़े तो प्रलय बन गए .... कब तक  मै रुकी रहती.. सहती रहती  जो थी दो धाराये वह तीन हो चली है   एक मेरे सब्र की, असीम वेदना की... उस अटूट विश्वास की जो तुम पर था  खंड खंड है सपने, घरोंदे ,खेत, खलियान  तुम्हारा  वो हर निर्माण जो तुमने , जो तुम्हारा नाम ले बनाये थे लोगो  ने  गूंज रहा है मेरा नाम ...... कभी डर से तो कभी फ़रियाद से  काश तुमने मेरा रास्ता न रोका होता  काश तुम सुन पाते मरघट सी आवाज  मेरी बीमार कर्राहे..........!!!! नहीं तुम्हे मेरी फ़िक्र कहा  तुम डूबे रहे सोमरस के स्वादन में  मद में प्रलोभन में ,अहंकार में  नहीं सुनी मेरी सिसकिया रोती रही बेटिया..माँ लेकर तुम्हारा नाम  ...देख

क्या नया निर्माण कर पायेगा ......?

भटकते रहे होकर गुमराह खोजते रहे मंजिलो की निसा पर्वत, जंगल,नदिया ,झरने वर्षा ,हवा इन पर सबका हक़ है नहीं वजूद इनके बिना चाहते सभी हक जमाना पर उड़ते बदल तुम्हे छु कर उड़ जाएँगे ...कभी हाथ न आयेंगे बनाता रह तू महल अपने ख्याबो के ... तेरे ख्वाबो का तमाशा पल भर में खाक हो जायेगा यह नियति है इसका भरोसा न कर करना है भरोसा तो नेक नियति पर कर तीर्थ तेरे मन में है तेरे घर में है तू अपनी धूनी यहाँ न जमा उलझा उलझा अपने बनाये जाल में अब क्या करनी से बच पायेगा ... विनाश को बुला कर अब क्या बचा पायेगा जब वक्त  था तब समझा ही नहीं अब तो आदी,  झूठ और मक्कारी का क्या नया निर्माण कर पायेगा,..................!!!

लम्हा लम्हा वक्त गुजरता रहा .....!

लम्हा लम्हा वक्त गुजरता रहा क्या कहा उसने इतना तो बता दिया होता  भुला तो दिया दिल से जुदा कर दू क्यों उसने क्या कर दिया  भूले से ही सही  कसूर तो बता देता कर देता रुखसते मुहब्बत अंधेरो  में जो चिराग  जलाता रहा  खुद ही शुरू करता है .... कहानिया वो रोज नई कैसे कहे  सितमगर से  नहीं भुला सकते उसको हर पल जो याद आता रहा  लम्हा लम्हा वक्त गुजरता रहा मशगूल रहा वो गैरो में अपनों पर जुल्म करता रहा चीखती है दीवारे मुझ पर  उसकी आवाज का जादू छाया रहा  कब टूटेगा तिलस्म ......... मायाजाल जो बुनता रहा  रहता है बेपरवाह सा करते रहें दुआ फिर भी  उसे मिले हर ख़ुशी  चाहता वो जो रहा  लम्हा लम्हा वक्त  गुजरता रहा ...........!