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Showing posts from June, 2010

जिन्दगी छीन जीने को कहते हो तुम......।

जिन्दगी छीन, जीने को कहते हो तुम दोस्ती का नाम दे दुश्मनी निभाते हो हो तुम... क्या गम है क्यो उदास हो........ ताउम्र का गम दे हाल जानना चाहते हो  तडप पर तडप दे, खुशी का वादा करते हो मुझसे छीन कर हर खुशी मेरी कैसी वफा की रीत निभा रहे हो ........ जिसे प्यार कहते हो वह एक ढोग है इस ढोंग का कब तलक निभा सकोगे तुम। जिन्दगी छीन,जीने को कहते हो तुम आरजुओ के दरवाजे बार-बार नही खुलते अहसासों के समन्दर बार.बार नही उठते ........।      जो कहता है मै अपना हूं अपना होकर भी मुझसे अन्जाना क्यों है क्या उम्मीद पत्थर  और पागलों से जो चाहे , जहां ठोकर खाते है........।  जिन्दगी छीन ,जीने को कहते हो तुम दोस्ती के नाम पर दुश्मनी निभाते हो तुम......। 

इंसान और इंसान की फितरत ?

इंसान और इंसान की फितरत  कितने अजीब है दोनो ही ? बहुतेरे रंग भर लगता गिरगट सा स्वाग रचता ढोंग की दूनिया बसाता इंसान और इंसान की फितरत  कितने अजीब है दोनो ही ? पलभर में बना लेता गैरों को अपना भुला देता खुन के रिश्तों को लहु पानी बन बहता रगों में उजाड देता उसका ही चमन  जिसने दिया उसको जनम इंसान और इंसान की फितरत  कितने अजीब है दोनो ही ?  अपनी बेबाकी से वो  दिलों को जख्मी कर देता है जो भर न सके वो नासुर बना देता है रौंदा इसने प्रकृति को  अपना आशियाना बना डाला कीमत जान की है बहुत सस्ती गर गरीब हो इन्सा कोई वही उसे मार डालता है  . इंसान का इंसान अब रिश्ता खत्म जो हो चला है इंसान और इंसान की फितरत  कितने अजीब है दोनो ही ................. ....।

उस राह पर कैसे गुज़रे.................।

उम्मीदों से कहो दामन न छूटे........... जो दर खुला है खुदा का उस राह पर कैसे गुज़रे कितना सकूंन है तेरे दामन में के तू दिखता नही फिर भी मै तूझे महसूस करती हूं........... पवित्र कितनी तेरी जमीन है रूह को चैन बस तेरे पास ही मिलता है इबादत कैसे करू इस काबिल भी तो नही तूझ तक मेरी फरियाद पहुचे वजह भी तो नही........... उम्मीदों से कहो हार न माने जो सुनता है सबकी क्या वो यही कही है कैसे तूझे पा लूं अब आस को आस कब तक रहे जो दे मांगे जिन्दगी उसे मिलती नही तंग दिल बोझिल है जो वह ढोये चले जा रहे है................. जो दर खुला है खुदा का उस दर तक कैसे पंहुचे कितनी बार चाहा तू कैसे मिले पर सिर्फ उम्मीद और उम्मीद इसके सिवा कुछ नही .........................।

टूटे दिल मुश्किल से जी पाये........

मुश्किल बहुत होता है खुद को संभालना जब बिखरते है ख्वाब टुटता है मंजर मुश्किल बहुत होता है खुद को रोका पाना पूरी होती है हसरते तमाम वक्त कभी ठहरता क्यों नही? चलता रहता है बस सबसे अन्जान मुश्किल बहुत होता दिल का संभलना टूटता है जब खिलौने की तरह ख्वाहिशे जगती ही क्यो अरमानो का दम घुटना तो .....एक दिन तय ही है न फिर रो कर रूसवाईयां ...कैसे समझे वो जो समझ कर भी अन्जान रहे मुशकिल बहुत होता है सबसे रूठना जो रूठे उन्हे कैसे मनाये मुश्किल है जीवन डगर इससे पार कैसे पाये मुश्किल ही सही संभालो दोस्तो टूटे दिल बडी मुश्किल से जी पाये............।