इंसान और इंसान की फितरत
कितने अजीब है दोनो ही ?
बहुतेरे रंग भर लगता गिरगट सा
स्वाग रचता ढोंग की दूनिया बसाता
इंसान और इंसान की फितरत
कितने अजीब है दोनो ही ?
पलभर में बना लेता गैरों को अपना
भुला देता खुन के रिश्तों को
लहु पानी बन बहता रगों में
उजाड देता उसका ही चमन
जिसने दिया उसको जनम
इंसान और इंसान की फितरत
कितने अजीब है दोनो ही ?
अपनी बेबाकी से वो
दिलों को जख्मी कर देता है
जो भर न सके वो नासुर बना देता है
रौंदा इसने प्रकृति को
अपना आशियाना बना डाला
कीमत जान की है बहुत सस्ती
गर गरीब हो इन्सा कोई
वही उसे मार डालता है .
इंसान का इंसान अब रिश्ता खत्म जो हो चला है
इंसान और इंसान की फितरत
कितने अजीब है दोनो ही .....................।
Sachmuch bahut hi acchaa likha hai apne, bilkul kabile tarif. kabhi mauka mile to jarur padhiyega.
ReplyDeletewww.taarkeshwargiri.blogspot.com
इंसान का इंसान अब रिशता खत्म हो चला,सही कहा ।
ReplyDeleteइंसान और इंसान की फितरत
ReplyDeleteकितने अजीब है दोनो ही .....................।
वाकई दोनों अजीब है
बहुतेरे रंग भर लगता गिरगट सा
ReplyDeleteस्वाग रचता ढोंग की दूनिया बसाता
इंसान और इंसान की फितरत
कितने अजीब है दोनो ही ?
सही पहचाना है सुनीता जी । बढ़िया ।
आपको सभी को यह लिखा पसन्द आया विचार आते है बस शब्द रूप में कुछ कह देती हूं इसे कविता जानो या कुछ भी सब आप सभी पर है बस लिख कर मन हल्का हो जाता है।
ReplyDeleteउम्मीद है आप सभी को मेरा अन्य ब्लाग जीवन धारा पसन्द आयेगा
ReplyDeleteएक बार देखे, जीवन धारा http://chittachurcha.blogsspot.com
बहुत अच्छी कविता।
ReplyDeletebahut khoob...
ReplyDeleteसुन्दर
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