उम्मीदों से कहो दामन न छूटे...........
जो दर खुला है खुदा का
उस राह पर कैसे गुज़रे
कितना सकूंन है तेरे दामन में
के तू दिखता नही फिर भी मै तूझे महसूस करती हूं...........
पवित्र कितनी तेरी जमीन है
रूह को चैन बस तेरे पास ही मिलता है
इबादत कैसे करू इस काबिल भी तो नही
तूझ तक मेरी फरियाद पहुचे वजह भी तो नही...........
उम्मीदों से कहो हार न माने
जो सुनता है सबकी क्या वो यही कही है
कैसे तूझे पा लूं अब आस को आस कब तक रहे
जो दे मांगे जिन्दगी उसे मिलती नही
तंग दिल बोझिल है जो वह ढोये चले जा रहे है.................
जो दर खुला है खुदा का
उस दर तक कैसे पंहुचे
कितनी बार चाहा तू कैसे मिले
पर सिर्फ उम्मीद और उम्मीद इसके सिवा कुछ नही .........................।
कितना सकूंन है तेरे दामन में
ReplyDeleteके तू दिखता नही फिर भी मै तूझे महसूस करती हूं.
Vah!! bdhad rohani aur ghoodh bat kahi aapne.
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत अच्छी नज़्म है...बधाई...
ReplyDeleteनीरज
आईये जानें ....मानव धर्म क्या है।
ReplyDeleteआचार्य जी
खूबसूरत नज़्म
ReplyDeleteउम्मीदों से कहो हार न माने
ReplyDeleteजो सुनता है सबकी क्या वो यही कही है
सुन्दर अहसास समेटे अच्छी रचना ।
सुन्दर अहसास समेटे अच्छी रचना
ReplyDelete....बेहतरीन!!!
ReplyDeleteवाह
ReplyDelete