कोई तो है जो कहे
चलो चार कदम मेरे साथ
इस दुनिया में वरना
कहां अपनों को तलाश करे
कैसे कहे जख्म कितने खाये है
अजनबियों से कहो
उन पर भरोसा कैसे करे
हर कदम सोचे तो उठाये
जिन्दगी को कह दो न इतराये
कभी -कभी जिन्दगी भी साथ छोड देती है
कौन है फिर अपना वो साया
कही खुद की परछाइयाँ तो नही
सच किसे मान लूं
मै या मेरी परछाई
कौन चलता है साथ-साथ
तू ही तो एक अपनी है जो
अन्त तक साथ निभायेगी
वरना तो सबकुछ धुआं हो जायेगा
न तुम होगे न कोई गम सताने वाला
वो जो तन्हाई का सहारा है
वही तो बस एक अपना है
जग झूठा ,जीवन, जीने मरने का फेरा है
मान लो मेरी बात सच कुछ नही
बस एक सच है, जो आज है, वो कल न होगा...........।
चलो चार कदम मेरे साथ
इस दुनिया में वरना
कहां अपनों को तलाश करे
कैसे कहे जख्म कितने खाये है
अजनबियों से कहो
उन पर भरोसा कैसे करे
हर कदम सोचे तो उठाये
जिन्दगी को कह दो न इतराये
कभी -कभी जिन्दगी भी साथ छोड देती है
कौन है फिर अपना वो साया
कही खुद की परछाइयाँ तो नही
सच किसे मान लूं
मै या मेरी परछाई
कौन चलता है साथ-साथ
तू ही तो एक अपनी है जो
अन्त तक साथ निभायेगी
वरना तो सबकुछ धुआं हो जायेगा
न तुम होगे न कोई गम सताने वाला
वो जो तन्हाई का सहारा है
वही तो बस एक अपना है
जग झूठा ,जीवन, जीने मरने का फेरा है
मान लो मेरी बात सच कुछ नही
बस एक सच है, जो आज है, वो कल न होगा...........।
bahut sateek baat ..jo aaj hai kal nahi hoga
ReplyDeletesundar abhivyakti
bahut khoob Sunita ji..........mai to fan ho gaya apka
ReplyDeleteregards
sanjay
अहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं
ReplyDeleteपरिवर्तन ही सत्य है.......!
ReplyDeleteपर अंधेरा आने पर अपनी परछाई भी साथ छोड़ देती है ...
ReplyDeleteगहरे जज़्बातों को लिख है आपने ...