मासूम चेहरो से, डर लगता है
इनकी तल्खी, शोखिया, अदाये
होती है कातिलाना
चेहर, जो चलाते है नश्तर
कैसे कहूं इन नश्तरों से डर लगता है
मासुम आंखे दिलों में चलाकिया
चलाकियों से, डर लगता है!
कत्ल कर जाते है खामोशी से
उफ! भी नही जरा,
मासूम चेहरो से दूर रहना है
इनकी जिदे ,इनकी दीवानगी
रो कर हर बात मनवा लेना
चेहरों ने गुनाह करवाये है !
आइना दिखा देता है फितरत एक दिन
सौ बार जो मुंह छिपाये है !
मासूम चेहरों से डर लगता है !
होती है इनकी बाते निराली
हर शह को दूर कर दो
चेहरों पर लगे है चेहरे ,
बन्द कर लिया है आंखो को
हां ! मासूम चेहरों से डर लगता है......।
MASOOM CHEHAROON SE DAR ACHCHHA LAGAA!!!
ReplyDeleteरचना मर्मस्पर्शी है और मानसिक परितोष प्रदान करता है।
ReplyDeleteचेहरों पर लगे है चेहरे ,
ReplyDeleteबन्द कर लिया है आंखो को
हां ! मासूम चेहरों से डर लगता है......।
बेहतरीन लिखा है. वाकई मासूमों से नहीं बनावटी मासूम चेहरो से ही डरने की जरूरत है.
बहुत खूब लिखा है.
बहुत सही बात कही है. आजकल असली और नकली में भेद करना ही मुश्किल हो गया है.
ReplyDeleteबनावटी लोगों से दूर रहना ही अच्छा है.
एक सच को शब्दों में संवार कर रख दिया है जैसे!
ReplyDeleteइस दर्द, इस घुटन और इन अहसासों के साथ जीना...!
शाबाशी दी जाए यूं जीने की
या फिर विद्रोह की भरी जाए कोई चिंगारी
तेरे भीतर!
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महिलाओं के प्रति हो रही घरेलू हिंसा के खिलाफ [उल्टा तीर] आइये, इस कुरुती का समाधान निकालें!
चेहरे तो बदलते रहते है .. डर तो उस चेहरे के पीछे उपरी मंज़िल पर स्थित दिमाग से लगना चाहिये ।
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