Skip to main content


मासूम चेहरो से, डर लगता है
इनकी तल्खी, शोखिया, अदाये
होती है कातिलाना
चेहर, जो चलाते है नश्तर
कैसे कहूं इन नश्तरों से डर लगता है
मासुम आंखे दिलों में चलाकिया
चलाकियों से, डर लगता है!
कत्ल कर जाते है खामोशी से
उफ! भी नही जरा,
मासूम चेहरो से दूर रहना है
इनकी जिदे ,इनकी दीवानगी
रो कर हर बात मनवा लेना
चेहरों ने गुनाह करवाये है !
आइना दिखा देता है फितरत एक दिन
सौ बार जो मुंह छिपाये है !
मासूम चेहरों से डर लगता है !
होती है इनकी बाते निराली
हर शह को दूर कर दो
चेहरों पर लगे है चेहरे ,
बन्द कर लिया है आंखो को
हां ! मासूम चेहरों से डर लगता है......।

Comments

  1. MASOOM CHEHAROON SE DAR ACHCHHA LAGAA!!!

    ReplyDelete
  2. रचना मर्मस्पर्शी है और मानसिक परितोष प्रदान करता है।

    ReplyDelete
  3. चेहरों पर लगे है चेहरे ,
    बन्द कर लिया है आंखो को
    हां ! मासूम चेहरों से डर लगता है......।
    बेहतरीन लिखा है. वाकई मासूमों से नहीं बनावटी मासूम चेहरो से ही डरने की जरूरत है.
    बहुत खूब लिखा है.

    ReplyDelete
  4. बहुत सही बात कही है. आजकल असली और नकली में भेद करना ही मुश्किल हो गया है.
    बनावटी लोगों से दूर रहना ही अच्छा है.

    ReplyDelete
  5. एक सच को शब्दों में संवार कर रख दिया है जैसे!
    इस दर्द, इस घुटन और इन अहसासों के साथ जीना...!
    शाबाशी दी जाए यूं जीने की
    या फिर विद्रोह की भरी जाए कोई चिंगारी
    तेरे भीतर!
    --

    महिलाओं के प्रति हो रही घरेलू हिंसा के खिलाफ [उल्टा तीर] आइये, इस कुरुती का समाधान निकालें!

    ReplyDelete
  6. चेहरे तो बदलते रहते है .. डर तो उस चेहरे के पीछे उपरी मंज़िल पर स्थित दिमाग से लगना चाहिये ।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

तुम ही तो हो !!

************ कहाँ जाऊ तेरी यादों से बचकर हर एक जगह बस तू ही है तेरा प्यार तेरा एकरार, तेरी तकरार हरदम मुझमें समाया है मेरी रूह में बस तेरा ही साया है, हमसफर बन साथ निभाना था बीच राह में ही छोड दिया तन्हा मुझकों दिन ढलते ही तेरी यादें मुझे घेर लेती है तू ही है हर जगह ............. हवायें भी यही कहती है क्यो लिया लबों से मेरा नाम जब मुझसे दूर ही जाना था | फिर हमसे न जीया जायेगा तेरे बिन जिन्दगी का जहर  न पीया जायेगा, मासूम है  यह दिल बहुत... हर लम्हा तूझे ही याद करता जायेगा | ##

गूंजते है सन्नाटो में ......!!

अब वो बात कहा, जो कभी थी  गूंजते है सन्नाटो में  कह्कशे जोरो से  थी मुकमल कोशिश बस ....!! गमगीन सी है महफ़िल तेरी  वक्त कभी ठहरता नहीं  इंतजार कितना भी करो  जो आज है वो कल न होगा  जो कल होगा उसका बारे  क्या जान सका कोई कभी .....!!! परदे लाख डाल लो  सच पंख पसारता ही है  फिर टूटते है मासूम दिल  लगती है तोहमते वफ़ा पर  अब यहाँ क्या पायेगा  लाशो और खंडरो में  अतीत को क्या तलाश पायेगा  रहा एक सदमा सही, पर  हुआ यह भी अच्छा ही   चल गया पता अपनों में गैरो का  सभी अपने होते तो गैर  कहा जाते  अब तन्हाई में ख़ुशी का दीप जलता नहीं  बस है सिसकियाँ...और वीरानिया  देखना है वफाएचिराग जलेगा कब तलक   जो था गम अब उसकी भी परवाह नहीं..... l

आखिर कब तक सहूंगी......भाग दो

घरेलू हिंसा जो मुद्दा मैने उल्टा तीर पर उठाया किन्ही अपरिहार्य कारणो की वजह से उस ब्लाग पर नही पोस्ट कर रही हूं मैने आखिर कब तक संहूगी    शीर्षक से लिखी पोस्ट में मैने घरेलू हिसां के कारणो व प्रवृत्तियों पर लिखा जिसमें यह लिखा कि किस तरह घरेलू हिंसा का शिकार व्यक्ति अपने काम पर भी ध्यान नही दे पाता किस तरह घरों में रिश्तों के दौरान हिंसा पनपती है। जहां तक मै समझती हूं कोई रिश्तों तब हिंसक हो उठता है जब उसे यह लगता है दूसरे को उसकी कोई परवाह नही जब पत्नियां पति पर हावी होने की कोशिश करे उसके परिवार की इज्जत न करे व उसे पलट कर जवाब दे पति की अनदेखी आथिर्क तंगी पति या पत्नी का अन्यत्र रूचि लेना। इसी तरह  काई महिला भी परिवार भी तभी हिसंक होती है जब उसकी उपेक्षा हो या उसका व्यवहार ही इस तरह का हो, दंबग होना अपना रोब व परिवार में अपनी तानाशाही चलाना ,किसी भी व्यक्ति के हिंसक होने के पीछे वो मनोवेग भी कारण होते है जिन से वह आये दिन गुजरता है ,सबसे अहम रोल होता है माहौल का जिससे बच्चे ,बूढे ,रूत्री पुरूष सभी ...