बेझिझक सी तरन्नुम में ये दौर कैसा है
क्या सोचे हम क्या कहे अब सब कुछ फीका है।
मायुस होता है मन है बेचैन भी
देख खाली हाथों को कितने व्याकुल है हम
बेबसी को क्या दूसरा नाम दूं
जो नही अपना उसे कैसे अपना कहु
क्या सोचे क्या कहे हम अब सब कुछ फीका है ।
आरजू क्या चाहती है देख ये पागलपन
न कहो उसको कुछ भी वो एक भंवरा है
उसकी आंखो की चमक को क्या नाम दे हम
रोक लो उसको बर्बादियों के कहर से
क्या सोचे क्या कहे हम अब सबकुछ फीका है।
क्या सोचे हम क्या कहे अब सब कुछ फीका है।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति. शुभकामनाएं।
रामराम.
आरजू क्या चाहती है देख ये पागलपन
ReplyDeleteन कहो उसको कुछ भी वो एक भंवरा है-------सुनीता जी इतना बढिया आपने लिख दिया कि दिल खुश हो गया। पहली पंक्ति पढने के बाद ऐसा लग रहा है कि पढता जाऊं, लेकिन कमबख्त लाइन ही खत्म हो गई। 13 लाइन की इस रचना में प्रत्येक शब्द कुछ कह रहे हैं। आप ऐसे ही लिखते रहें।
" bahut accha ...aapki lekhani ko salam "
ReplyDelete" likhati rahe aur kabhi hamare blog per bhi aaye ..aapka hardik swagat rahega "
------ eksacchai { AAWAZ }
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मायूसी में मन सदा रहता है बेचैन।
ReplyDeleteभाव बहुत अच्छा लगा और चित्र के नैन।।
www.manoramsuman.blogspot.com
manbhavan.narayan narayan
ReplyDeleteआरजू क्या चाहती है देख ये पागलपन
ReplyDeleteन कहो उसको कुछ भी वो एक भंवरा है
बहुत सुन्दर. स्वागत है.
वन्दना जी
ReplyDeleteआप मेरे ब्लाग पर आई इसके लिए शु्क्रिया आपके मेरी रचना अच्छी लगी... मैने कुछ सोचा समझा नही जो दिल में आया वही उतार दिया पहले ये सब डायरी पर लिखा करती थी अब यहां कोशिश की है।
आप सब को पढा इससे मेरा हौसला बढा है वरना मैने तो लिखना छोड ही दिया था पूरे 8 साल लग गये वापस आने में सच तो ये है मै कही खो गयी थी।........
great expression,welcome
ReplyDeleteचिट्ठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. बहुत अच्छा. और भी अच्छा लिखें, लेखन के द्वारा बहुत कुछ सार्थक करें, मेरी शुभकामनाएं.
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