Skip to main content


          महकती रहों तुम ,नन्ही कली मेरे बगिया की.....
      
          युं जैसे महकती है रात की रानी
          तुम मेरे जीवन की आधार हो
          तुम बिन थी कितनी अधूरी!
        
          महकती रहों तुम ,नन्ही कली मेरे बगिया की.....

                                                                                

महकती रहों तुम नन्ही कली मेरी बगिया की........

जैसा मैने सोचा तुम हो नितांत वैसी ही
तुम्हारा हंसना, जैसे जान हो मेरी
तुम्हारा रोना, लगता ले लेगा प्राण मेरे!

महकती रहो तुम,नन्ही कली मेरी बगिया की.......
जीवन था जो रसहीन तुमने
अपने कदमों की आहट से
मेरे हर क्षण को कर दिया जीवन्त मानो!

महकती रहो तुम,नन्ही कली मेरी बगिया की.......

              ____________
        

Comments

  1. मुझे कविता लिखना नही आता पर जब मै लेख या कोइ न्यूज लिखती हूं, मेरी नन्ही गुडिया मेरी पास आ कर पुछती है मै क्या कर रही हूं? वो कहती है मम्मा मेरे लिए लिखो मेरी ये कोशिश है उसके लिए कुछ लिखने की.........

    ReplyDelete
  2. आपकी यह कोशिश बहुत बहुत कामयाब है और बहुत ही प्यारी कविता लिखी है आपने. कविता शुरू होकर खुद-ब-खुद एक ऐसे सार और अर्थ पर पहुँच गई है जहां रचना की सार्थकता सोचने ही लायक बनती है.
    जारी रहें. शुभकामनाएं.

    ---
    समाज और देश के ज्वलंत मुद्दों पर अपनी राय रखने के लिए व बहस में शामिल होने के लिए भाग लीजिये व लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!

    ReplyDelete
  3. महकती रहो तुम,नन्ही कली मेरी बगिया की.......
    जीवन था जो रसहीन तुमने
    अपने कदमों की आहट से
    मेरे हर क्षण को कर दिया जीवन्त मानो!

    महकती रहो तुम,नन्ही कली मेरी बगिया की.......

    waah kitni meethi

    ReplyDelete
  4. महकती रहो तुम,नन्ही कली मेरी बगिया की.......
    sunitaji
    aap ki shuruaat bahut hi sahaj hue hai aur adamber ke bina aapne apne bhavoon ko kavya roop dene ki chesta ki hai...muje pura viswas hai ki aap bahut achi kaviyatri ban sakti hai..kripiya likhiyega .....rakesh

    ReplyDelete
  5. मेरी इस रचना के लिए जिसे आप कविता कह रहे है तो सोचती हूं अपनी उस रचना के बारे में जिसे मैने रोज तीन सालों में नवीन रूप लेते हुए देखा है ।
    हौसला बढानें के लिए बहुत शुक्रिया सभी का......

    ReplyDelete
  6. आपकी यह कवित आपकी गुड़िया के लिए
    प्यार और स्नेहं का प्रमाण हैं
    आपके बगिया में हमेशा महकती रहे नन्ही कली

    ReplyDelete
  7. wahh !!!
    ek dam vatsalya pooran or mamatva se bharpoor...
    betiyan to hoty hi esse hain..

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

तुम ही तो हो !!

************ कहाँ जाऊ तेरी यादों से बचकर हर एक जगह बस तू ही है तेरा प्यार तेरा एकरार, तेरी तकरार हरदम मुझमें समाया है मेरी रूह में बस तेरा ही साया है, हमसफर बन साथ निभाना था बीच राह में ही छोड दिया तन्हा मुझकों दिन ढलते ही तेरी यादें मुझे घेर लेती है तू ही है हर जगह ............. हवायें भी यही कहती है क्यो लिया लबों से मेरा नाम जब मुझसे दूर ही जाना था | फिर हमसे न जीया जायेगा तेरे बिन जिन्दगी का जहर  न पीया जायेगा, मासूम है  यह दिल बहुत... हर लम्हा तूझे ही याद करता जायेगा | ##
लिफाफे में रखे खत का कोई वजुद नही होता ......... अनकही कहानी उधडते रिश्तों की जबान नही होती दर्द सिर्फ सहने के लिए होता है दर्द की कोई हद नही अब फीकी हंसी हंसते है लब खुद को कहां अधेरों में तलाश करते है खेल जो समझे जिन्दगी को उनको रोको जिन्दगी खेल नही लहुलुहान करते है शब्द शब्दों से चोट न करो जो कुछ मौत के करीब है वो कितना खुशनसीब है कोई तो गले लगाने की ख़्वाहिश रखता है जो दे सके सिर्फ खुशी यह जरूरी तो नही गुलाब भी कांटों संग रहता है नही करता कांटो से शिकायत कोई सुखे किताबों में पडे फूलों से क्या महक आती है इतने संगदिल कैसे होते लोग खुदा से डर न कोई खौफ होता है लिफाफों में रखे खतो का कोई वजुद नही होता....... इस जहां में किसे अपना कहे अपनों से परायों की बू आती है तडपतें जिनके लिए उनका कुछ पता नही होता सचमुच बंद लिफाफों में रखे खतो का कोई वजुद नही होता...........। ...........

टूटे रिश्तों की खनक........।

खत्म होते रिश्ते को जिन्दा कैसे करू जो रूठा है उसे कैसे मना पाउ कहुं कैसे तू कितना अजीज है सबका दुलारा प्यारा भाई है याद आते वो दिन जब पहली बार तू दूनिया मे आया हम सबने गोद में उठा तूझे प्यार से सहलाया रोते रोते बेदम तूझ नन्हे बच्चे को मां के कपडे पहन मां बन तूझे बहलाया कैसे बचपन भूल गया आज  बडा हो गया कि बहनों का प्यार तौल गया सौदा करता बहनों से अपनी अन्जानी खुशियो का वह खुशियां जो केवल फरेब के सिवा कुछ भी नही जख्मी रिश्ते पर कैसे मरहम लगाउ । आंखे थकती देख राहे तेरी पर नही पसीजता पत्थर सा दिल तेरा बैठा है दरवाजे पर कोई हाथ में लिए राखी का एक थागा, आयेगा भाई तो बाधूगी यह प्यार का बंधन वह जो बंधन से चिढता है रिश्तों को पैसो से तौलता है आया है फिर राखी का त्यौहार फिर लाया है साथ में टूटे रिश्तों की खनक.....................। जान लो यह धागा अनमोल है प्यार का कोई मोल नही इस पवित्र रिश्ते सा दूनिया में रिश्ता नही ................।                .....................