महकती रहों तुम ,नन्ही कली मेरे बगिया की.....
युं जैसे महकती है रात की रानी
तुम मेरे जीवन की आधार हो
तुम बिन थी कितनी अधूरी!महकती रहों तुम ,नन्ही कली मेरे बगिया की.....
जैसा मैने सोचा तुम हो नितांत वैसी ही
तुम्हारा हंसना, जैसे जान हो मेरी
तुम्हारा रोना, लगता ले लेगा प्राण मेरे!
महकती रहो तुम,नन्ही कली मेरी बगिया की.......
जीवन था जो रसहीन तुमने
अपने कदमों की आहट से
मेरे हर क्षण को कर दिया जीवन्त मानो!
महकती रहो तुम,नन्ही कली मेरी बगिया की.......
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मुझे कविता लिखना नही आता पर जब मै लेख या कोइ न्यूज लिखती हूं, मेरी नन्ही गुडिया मेरी पास आ कर पुछती है मै क्या कर रही हूं? वो कहती है मम्मा मेरे लिए लिखो मेरी ये कोशिश है उसके लिए कुछ लिखने की.........
ReplyDeleteआपकी यह कोशिश बहुत बहुत कामयाब है और बहुत ही प्यारी कविता लिखी है आपने. कविता शुरू होकर खुद-ब-खुद एक ऐसे सार और अर्थ पर पहुँच गई है जहां रचना की सार्थकता सोचने ही लायक बनती है.
ReplyDeleteजारी रहें. शुभकामनाएं.
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समाज और देश के ज्वलंत मुद्दों पर अपनी राय रखने के लिए व बहस में शामिल होने के लिए भाग लीजिये व लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!
महकती रहो तुम,नन्ही कली मेरी बगिया की.......
ReplyDeleteजीवन था जो रसहीन तुमने
अपने कदमों की आहट से
मेरे हर क्षण को कर दिया जीवन्त मानो!
महकती रहो तुम,नन्ही कली मेरी बगिया की.......
waah kitni meethi
महकती रहो तुम,नन्ही कली मेरी बगिया की.......
ReplyDeletesunitaji
aap ki shuruaat bahut hi sahaj hue hai aur adamber ke bina aapne apne bhavoon ko kavya roop dene ki chesta ki hai...muje pura viswas hai ki aap bahut achi kaviyatri ban sakti hai..kripiya likhiyega .....rakesh
मेरी इस रचना के लिए जिसे आप कविता कह रहे है तो सोचती हूं अपनी उस रचना के बारे में जिसे मैने रोज तीन सालों में नवीन रूप लेते हुए देखा है ।
ReplyDeleteहौसला बढानें के लिए बहुत शुक्रिया सभी का......
आपकी यह कवित आपकी गुड़िया के लिए
ReplyDeleteप्यार और स्नेहं का प्रमाण हैं
आपके बगिया में हमेशा महकती रहे नन्ही कली
wahh !!!
ReplyDeleteek dam vatsalya pooran or mamatva se bharpoor...
betiyan to hoty hi esse hain..