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छलक पड़े.... तो प्रलय बन गए ......!!!

क्यों हो गयी शिव तुम्हारी जटाए
कमजोर नहीं संभल पाई ........!!!
वेग और प्रचण्डना को 
मेरी असहनीय क्रोध के आवेग को 
पुरे गर्जना से बह गया क्रोध मेरा 
बनकर मासूमो पर भी जलप्रलय 
मै............
सहती रही .निसब्द देखती रही 
रोकते रहे मेरी राहे अपनी ...
पूरी अडचनों से नहीं ,बस और नहीं 
टूट पड़ा मेरे सब्र का बांध और तोड़ 
दिए वह सारे बंधन जो अब तक 
रुके रहे आंसू के भर कर सरोवर 
छलक पड़े तो प्रलय बन गए ....
कब तक  मै रुकी रहती.. सहती रहती 
जो थी दो धाराये वह तीन हो चली है 
 एक मेरे सब्र की, असीम वेदना की...
उस अटूट विश्वास की जो तुम पर था 
खंड खंड है सपने, घरोंदे ,खेत, खलियान 
तुम्हारा  वो हर निर्माण जो तुमने ,
जो तुम्हारा नाम ले बनाये थे लोगो  ने 
गूंज रहा है मेरा नाम ......
कभी डर से तो कभी फ़रियाद से 
काश तुमने मेरा रास्ता न रोका होता 
काश तुम सुन पाते मरघट सी आवाज 
मेरी बीमार कर्राहे..........!!!!
नहीं तुम्हे मेरी फ़िक्र कहा 
तुम डूबे रहे सोमरस के स्वादन में 
मद में प्रलोभन में ,अहंकार में 
नहीं सुनी मेरी सिसकिया
रोती रही बेटिया..माँ लेकर तुम्हारा नाम 
...देखो प्रभु तुम्हारी दुनिया में 
क्या न हो रहा.. तुम मौन साधना में विलीन रहे  
कैसे न टूटता फिर मेरा वेग, कैसे रुकता मेरा प्रवाह 
रुदन से मेरे आंसू ...को नेत्र न संभाल पाए 
खुल गयी तुम्हारी जटाए भी .......
प्रलय को कौन रोक पता ..इसे तो आना ही था !!!


Comments

  1. This article shows how your innersoul is crying upon Tragedy of Uttarakhand...nice emotion

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  2. गंगा का दर्द बखूबी कह दिया है ....शायद उसे भी इस प्रलय से वेदना हो रही है ।

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तुम ही तो हो !!

************ कहाँ जाऊ तेरी यादों से बचकर हर एक जगह बस तू ही है तेरा प्यार तेरा एकरार, तेरी तकरार हरदम मुझमें समाया है मेरी रूह में बस तेरा ही साया है, हमसफर बन साथ निभाना था बीच राह में ही छोड दिया तन्हा मुझकों दिन ढलते ही तेरी यादें मुझे घेर लेती है तू ही है हर जगह ............. हवायें भी यही कहती है क्यो लिया लबों से मेरा नाम जब मुझसे दूर ही जाना था | फिर हमसे न जीया जायेगा तेरे बिन जिन्दगी का जहर  न पीया जायेगा, मासूम है  यह दिल बहुत... हर लम्हा तूझे ही याद करता जायेगा | ##
लिफाफे में रखे खत का कोई वजुद नही होता ......... अनकही कहानी उधडते रिश्तों की जबान नही होती दर्द सिर्फ सहने के लिए होता है दर्द की कोई हद नही अब फीकी हंसी हंसते है लब खुद को कहां अधेरों में तलाश करते है खेल जो समझे जिन्दगी को उनको रोको जिन्दगी खेल नही लहुलुहान करते है शब्द शब्दों से चोट न करो जो कुछ मौत के करीब है वो कितना खुशनसीब है कोई तो गले लगाने की ख़्वाहिश रखता है जो दे सके सिर्फ खुशी यह जरूरी तो नही गुलाब भी कांटों संग रहता है नही करता कांटो से शिकायत कोई सुखे किताबों में पडे फूलों से क्या महक आती है इतने संगदिल कैसे होते लोग खुदा से डर न कोई खौफ होता है लिफाफों में रखे खतो का कोई वजुद नही होता....... इस जहां में किसे अपना कहे अपनों से परायों की बू आती है तडपतें जिनके लिए उनका कुछ पता नही होता सचमुच बंद लिफाफों में रखे खतो का कोई वजुद नही होता...........। ...........

टूटे रिश्तों की खनक........।

खत्म होते रिश्ते को जिन्दा कैसे करू जो रूठा है उसे कैसे मना पाउ कहुं कैसे तू कितना अजीज है सबका दुलारा प्यारा भाई है याद आते वो दिन जब पहली बार तू दूनिया मे आया हम सबने गोद में उठा तूझे प्यार से सहलाया रोते रोते बेदम तूझ नन्हे बच्चे को मां के कपडे पहन मां बन तूझे बहलाया कैसे बचपन भूल गया आज  बडा हो गया कि बहनों का प्यार तौल गया सौदा करता बहनों से अपनी अन्जानी खुशियो का वह खुशियां जो केवल फरेब के सिवा कुछ भी नही जख्मी रिश्ते पर कैसे मरहम लगाउ । आंखे थकती देख राहे तेरी पर नही पसीजता पत्थर सा दिल तेरा बैठा है दरवाजे पर कोई हाथ में लिए राखी का एक थागा, आयेगा भाई तो बाधूगी यह प्यार का बंधन वह जो बंधन से चिढता है रिश्तों को पैसो से तौलता है आया है फिर राखी का त्यौहार फिर लाया है साथ में टूटे रिश्तों की खनक.....................। जान लो यह धागा अनमोल है प्यार का कोई मोल नही इस पवित्र रिश्ते सा दूनिया में रिश्ता नही ................।                .....................