था उसे भी इन्तजार
क्या सोच हाथ
बढाया होगा
सन्नाटे से कहो
चीख कर शोर न करे
खामोश रह कर
हक अदा करे.........!
कहां जा कर
खत्म होगा यह
अनजान सफर
जो शुरू तो हुआ
पर खत्म होने
नाम नही लेगा..........!
था उसे भी गुमां
अपने वजूद
पर इतराया तो होगा
क्षण भर में
चोटिल हुए
सपने .............!
ख्वाबों को हकीकत
से बावस्ता
तो होना होगा.........!
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