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आखिर कब तक सहुंगी...............!

आखिर जिन्दगी हार गयी जीने की चाहत होने के बावजूद उसे मौत ही मिली ?
  
होश में आ गयी है सरकार , आवाम। होश में नही आये वह लोग जो इस तरह के कार्य करते है क्योकि बावजूद इस दुर्दान्त घटना के, रेप के केस अभी जारी है । नेशनल क्राइम रिकार्डस ब्युरों के मुताबिक पिछले पांच वर्षो में महिलाओ के खिलाफ बलात्कार के मामले लगातार बढ रहे है । दामिनी की दर्दनाक मौत से सभी का मन दुखा है घर से  बाहर निकल कर पहली बार शायद लोगो  इतने बडे स्तर पर  इजहार किया है इंसाफ की मांग  की है दोषियों पर फांसी पर चढा देना चाहते है मन में घृणा है इस तरह के लोगो के प्रति । साथ ही अपनी बहनों , बेटियों महिलाओ की सुरक्षा के लिए चिन्ता भी है ।
क्या डरा देना चाहते है महिलाओ को ताकि वह हमेशा दबी रहे घर से बाहर निकलने में डरे ! महिला क्या इन्सान नही क्या एक स्त्री को लडका  पैदा करने में तकलीफ होती है और लडकी पैदा करने में नही ? महिलाओ  के बढते कदमों से भय क्यों? कौन सी यह वह महिला जो पुरूष को प्रेरित करती है दूसरी महिला के प्रति हिंसा करने के लिए ! 
कहने को हम आदिम युग से निकल सभ्य समाज का निर्माण कर चुके है क्या भारत की सभ्यता व संस्कृति यही है जिसमें महिलाओ पर अत्याचार करने की सीख मिलती है । एशियन मानवाधिकार संगठन ने कहा कि महिला  को बराबर हक देना और महिलाओ पर हिंसा को अपराध की श्रेणी में रखना अब तक व्यवहारकि रूप से संभव नही हो सका है । महिलाओ पर हिसां को परम्परा और धर्म वैधानिकता प्रदान करते है । पिछले वर्षो में महिलाओ पर अपराधों में इजाफा हुआ है । 

बलात्कार के मामले मध्य प्रदेश बडों शहरों में दिल्ली बेंगलुरू तथा हैदराबाउ में महिला असुरक्षा का ग्राफ बढा है । हरियाणा में सामुहिक बलात्कार ने रिकार्ड तोड दिया ।

जिस तरह महिलाओ पर हिसां बढी सरकार व अन्य संस्थाओ पर प्रतिक्रिया न के बराबर रही ।
 दामिनी के मामले जिस तरह लोगा की प्रतिक्रिया चल रही है उसे देखते हुए लगता है अब इन अत्याचारों के लिए कठोर कानूनी व्यवस्था होनी ही चाहिए जिससे महिला इन्सान की तरह जी स जब चाहों उसकी अस्मिता को जहां चाहे रौद दिया जाये । 
देश, कानून व समाज शायद इतना होने पर अब तो तौबा करे आखिर स्त्री जो की एक  इन्सान  है उसे इन्सान होने का दर्जा भी मिल पाये ।

Comments

  1. मत कहो जिंदगी के दंगल में
    दामिनी की हार हुई।
    आज इंसानों के जंगल में
    इंसानियत की हार हुई।

    सही कहा . सिर्फ कठोर कानून से ही इस तरह की वीभत्स घटनाओं को रोक जा सकता है।

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  2. अब चुप रहने का समय नहीं रहा..तब तक आवाज उठानी होगी जब तक समाज के बहरे कानों में ये आवाज गूंजने न लगे...नव वर्ष की हार्दिक शुभकानाएं

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  3. उम्मीद है नवीन वर्ष, नवीन समाज की स्थापना करेगा ,आने वाला समय सभी के जीवन में खुशियां फैलाये।

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