धुंध- धुंध, धुआ- धुआ.........।
जिन्दगी बढती गयी
कांरवा चलता गया
दूर तक खामोशी और साये
आहटे बढती हौले हौले............।
रफ्तार जो थमती नही
आसुओ की रौ
तन्हाईया शोर मचाती है।
सारी परेशानियों का सबब
ऎ दिल अब तो संभल
बहके कदमों को संभाले
चलते रहे बस चलते रहे...........।
किसकों पुकारे इस राह पर
देखो कितना अंधियारा है
रफता रफता वक्त कटता
गुम होता उजियारा.........।
पुरवाई से कहो यहां न आये
तेरा दर यहां से दूर है।
दबे पांव मुस्कुराते है हौठं
मुस्कुराहट बैरी है।
धुंध-धुंध धुआ -धुआ................।
जिन्दगी बढती गयी
कांरवा चलता गया
दूर तक खामोशी और साये
आहटे बढती हौले हौले............।
रफ्तार जो थमती नही
आसुओ की रौ
तन्हाईया शोर मचाती है।
सारी परेशानियों का सबब
ऎ दिल अब तो संभल
बहके कदमों को संभाले
चलते रहे बस चलते रहे...........।
किसकों पुकारे इस राह पर
देखो कितना अंधियारा है
रफता रफता वक्त कटता
गुम होता उजियारा.........।
पुरवाई से कहो यहां न आये
तेरा दर यहां से दूर है।
दबे पांव मुस्कुराते है हौठं
मुस्कुराहट बैरी है।
nice
ReplyDeleteतन्हाईया शोर मचाती है।
ReplyDeleteबेहतरीन। बधाई।
जिन्दगी के अनेक भाव- धूप , छांव को समेटे यह कविता अच्छी लगी ।शुभकामनाएं...
ReplyDeleteऎ दिल अब तो संभल
ReplyDeleteबहके कदमों को संभाले
चलते रहे बस चलते रहे...........।
इसी में जिंदगी का सार है।
अच्छा प्रयास।