घरेलू हिंसा जो मुद्दा मैने उल्टा तीर पर उठाया किन्ही अपरिहार्य कारणो की वजह से उस ब्लाग पर नही पोस्ट कर रही हूं मैने आखिर कब तक संहूगी शीर्षक से लिखी पोस्ट में मैने घरेलू हिसां के कारणो व प्रवृत्तियों पर लिखा जिसमें यह लिखा कि किस तरह घरेलू हिंसा का शिकार व्यक्ति अपने काम पर भी ध्यान नही दे पाता किस तरह घरों में रिश्तों के दौरान हिंसा पनपती है।
जहां तक मै समझती हूं कोई रिश्तों तब हिंसक हो उठता है जब उसे यह लगता है दूसरे को उसकी कोई परवाह नही जब पत्नियां पति पर हावी होने की कोशिश करे उसके परिवार की इज्जत न करे व उसे पलट कर जवाब दे पति की अनदेखी आथिर्क तंगी पति या पत्नी का अन्यत्र रूचि लेना। इसी तरह काई महिला भी परिवार भी तभी हिसंक होती है जब उसकी उपेक्षा हो या उसका व्यवहार ही इस तरह का हो, दंबग होना अपना रोब व परिवार में अपनी तानाशाही चलाना ,किसी भी व्यक्ति के हिंसक होने के पीछे वो मनोवेग भी कारण होते है जिन से वह आये दिन गुजरता है ,सबसे अहम रोल होता है माहौल का जिससे बच्चे ,बूढे ,रूत्री पुरूष सभी प्रभावित होते है।
परिवार में यदि काई कानून का सहारा भी लेता है इसमें भी परिवारों की जगहंसाई ही होती है और जो रिश्ते प्रेम व सौहार्द से जुडे वह उस हिसां की वजह से टुट जाते है क्योकि जब सहन नही होता तो परिवार मे विच्छेदन की प्रक्रिया आ जाती है ।हिसां किसी भी रूप में भयानक है घरों में तो यह और भी बुरी जो लोग इसकी जगह परिवार में या रिश्तों में रखते है वह एक तरह का अपराध तो करते ही है साथ ही इसका खामियाजा बहुत से लोगो को भुगतना पडता है ।इसके लिए मै एक उदाहरण देती हूं एक प्रतिष्ठत परिवार की बहु मायके चली गयी जब काफी दिनों तक वह वही रही तो लोगो को पता चला कि उसने ससुरालवालों पर केस किया था दहेज व मारपीट का उसका आरोप था कि उसे ससुराल वालों ने मारा पेट पर लातें लगने की वजह से उसका बच्चा मर गया । आखिर जिस प्यार से काई शादी करता है तो फिर जिस लडकी को घर बसाने के लिए लाया जाता है उसी को मारा पीटा क्यों जाता है। इसके पीछे काम करता है कोई स्त्री रूपी एक स्त्री की दूसरी स्त्री की जलन का भाव उसकी यही भावना दूसरी स्त्री के लिए पुरूष को उकसाने का भाव होता है।
इसके लिए एक अन्य उदाहरण मै बताती हूं हमारे पडोस में एक सुन्दर सुशील लडकी का विवाह माता-पिता द्वारा द्वान दहेज दे कर करा जाता है पर जब लडकी विवाह के बाद फेरा डालने घर आती है तो उसके माथे पर चोट थी जिसे घर के लोगो ने छिपाया बाद में पता चला लडकी की पति ने लडकी को पहले ही दिन मारा उसकी शादी दबाव में थी वजह लडके के उसकी भाभी से अवैध सम्बंध ।लेकिन इसमें उस लडकी का क्या कसूर जो शादीशुदा होकर भी काई सुख न पा सकी जल्द ही पिता ने तलाक करवाया ।लडकी कई दिनो तक मानसिक अवसाद में रही।
ऎसे लडके की शादी ही क्यों की जो पहले से एक गलत रिश्ते में था उसका खामियाजा उस बेकसुर लडकी को भुगतना पडा आखिर उसकी क्या गलती थी जो आज एक परित्यक्ता का जीवन जी रही है।
उस पर उसे उस हिसां को भी झेलना पडा जिसके लिए वह कही से भी कसूरवार नही थी ।पहले उदाहरण में शिकार बना वो अजन्मा बच्चा जिसे दूनिया में आने से पहले ही जाना पडा वजह मां पर की गयी हिंसा उदाहरण बहुत है पर सवाल वही आखिर मार-पीट या हिंसा शारीरिक हो या मानसिक एक अपराध तो है ही साथ ऎसा अनैतिक कृत्य है जिसका होने से उसे झेलने वाले व करने वाले दोनो ही दुखी रहते है फिर बचाव क्या हो।इसके बचाव के उपायों पर मै आगे की पोस्ट पर चर्चा करूगी ............। पढते रहिए अभी जारी है।
जहां तक मै समझती हूं कोई रिश्तों तब हिंसक हो उठता है जब उसे यह लगता है दूसरे को उसकी कोई परवाह नही जब पत्नियां पति पर हावी होने की कोशिश करे उसके परिवार की इज्जत न करे व उसे पलट कर जवाब दे पति की अनदेखी आथिर्क तंगी पति या पत्नी का अन्यत्र रूचि लेना। इसी तरह काई महिला भी परिवार भी तभी हिसंक होती है जब उसकी उपेक्षा हो या उसका व्यवहार ही इस तरह का हो, दंबग होना अपना रोब व परिवार में अपनी तानाशाही चलाना ,किसी भी व्यक्ति के हिंसक होने के पीछे वो मनोवेग भी कारण होते है जिन से वह आये दिन गुजरता है ,सबसे अहम रोल होता है माहौल का जिससे बच्चे ,बूढे ,रूत्री पुरूष सभी प्रभावित होते है।
परिवार में यदि काई कानून का सहारा भी लेता है इसमें भी परिवारों की जगहंसाई ही होती है और जो रिश्ते प्रेम व सौहार्द से जुडे वह उस हिसां की वजह से टुट जाते है क्योकि जब सहन नही होता तो परिवार मे विच्छेदन की प्रक्रिया आ जाती है ।हिसां किसी भी रूप में भयानक है घरों में तो यह और भी बुरी जो लोग इसकी जगह परिवार में या रिश्तों में रखते है वह एक तरह का अपराध तो करते ही है साथ ही इसका खामियाजा बहुत से लोगो को भुगतना पडता है ।इसके लिए मै एक उदाहरण देती हूं एक प्रतिष्ठत परिवार की बहु मायके चली गयी जब काफी दिनों तक वह वही रही तो लोगो को पता चला कि उसने ससुरालवालों पर केस किया था दहेज व मारपीट का उसका आरोप था कि उसे ससुराल वालों ने मारा पेट पर लातें लगने की वजह से उसका बच्चा मर गया । आखिर जिस प्यार से काई शादी करता है तो फिर जिस लडकी को घर बसाने के लिए लाया जाता है उसी को मारा पीटा क्यों जाता है। इसके पीछे काम करता है कोई स्त्री रूपी एक स्त्री की दूसरी स्त्री की जलन का भाव उसकी यही भावना दूसरी स्त्री के लिए पुरूष को उकसाने का भाव होता है।
इसके लिए एक अन्य उदाहरण मै बताती हूं हमारे पडोस में एक सुन्दर सुशील लडकी का विवाह माता-पिता द्वारा द्वान दहेज दे कर करा जाता है पर जब लडकी विवाह के बाद फेरा डालने घर आती है तो उसके माथे पर चोट थी जिसे घर के लोगो ने छिपाया बाद में पता चला लडकी की पति ने लडकी को पहले ही दिन मारा उसकी शादी दबाव में थी वजह लडके के उसकी भाभी से अवैध सम्बंध ।लेकिन इसमें उस लडकी का क्या कसूर जो शादीशुदा होकर भी काई सुख न पा सकी जल्द ही पिता ने तलाक करवाया ।लडकी कई दिनो तक मानसिक अवसाद में रही।
ऎसे लडके की शादी ही क्यों की जो पहले से एक गलत रिश्ते में था उसका खामियाजा उस बेकसुर लडकी को भुगतना पडा आखिर उसकी क्या गलती थी जो आज एक परित्यक्ता का जीवन जी रही है।
उस पर उसे उस हिसां को भी झेलना पडा जिसके लिए वह कही से भी कसूरवार नही थी ।पहले उदाहरण में शिकार बना वो अजन्मा बच्चा जिसे दूनिया में आने से पहले ही जाना पडा वजह मां पर की गयी हिंसा उदाहरण बहुत है पर सवाल वही आखिर मार-पीट या हिंसा शारीरिक हो या मानसिक एक अपराध तो है ही साथ ऎसा अनैतिक कृत्य है जिसका होने से उसे झेलने वाले व करने वाले दोनो ही दुखी रहते है फिर बचाव क्या हो।इसके बचाव के उपायों पर मै आगे की पोस्ट पर चर्चा करूगी ............। पढते रहिए अभी जारी है।
घरेलू रिश्तो मे इतने पेंच होते है कि उसको कानून के जरिये सुलझा पाना हल नही है. फिर भी आगे तो आना ही होगा.
ReplyDeleteइस आलेख में सार्थक शब्दों के साथ तार्किक ढ़ंग से विषय के हरेक पक्ष पर प्रकाश डाला गया है। सबसे अहम रोल होता है माहौल का - मैं आपके इस विचार से सहमत हूं।
ReplyDeleteस्नेह. शांति, सुख, सदा ही करते वहां निवास
निष्ठा जिस घर मां बने, पिता बने विश्वास।
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ReplyDeleteThanks for the comment's
ReplyDeleteघरेलु हिंशा एक अभिशाप है.
ReplyDeleteपति पत्नी का रिश्ता , एक पावन रिश्ता है.
लेकिन आजकल मानविक मूल्यों में बहुत गिरावट आ रही है और लोभ में पड़कर
लोग मानवता को भूल जाते हैं.
सार्थक लेख , सुनीता जी.
सुनीता जी,
ReplyDeleteआखिर कब तक सहूंगी, चेहरे, और दिगर रचनाएं पढने का इत्तफाक हुआ..
लगता है काफी नाराज़ हैं आप, हालात से..
वैसे सब कुछ नकारात्मक नहीं होता..
उम्मीद है, फिर आये, तो सकारात्मक भी देखने को मिलेगा.
तो आप तलाश में जुट रहीं हैं न!
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
मिर्जा साहब कमेंट के लिए धन्यवाद मेरे लेखन से यह समझे कि मै नकारात्मक सोच रखती हूं पर हां उन बातों को लोगों के रूबरू रखने के कोशिश करती हूं जिन बातों को छुपाते है लोग, हम उनको बेपर्दा करने का हौसला रखते है साथ ही यह भी चाहते है कि सबकुछ सचमुच अच्छा ही अच्छा हो ।
ReplyDeleteमै यह नही समझ पाती कि जिम्मेदार पदों पर काम करने वाले अपने फर्ज से परे क्यों होते है प्लेटो ने कहा था यदि सभी अपना अपना काम न्यायप्रिय ढंग से करे अपने कर्तव्यों का निर्वहन ठीक सक करे वही न्याय होता है पत्रकारिता में आकर भी अपने पथ व कर्तव्यों को आज सभी कितना निभा रहे है। ये कौन सी दिशा में जा रहे है हम think once again........
ReplyDeleteबहुत सार्थक और विचारणीय आलेख. घरेलु हिंसा कहीं न कहीं किसी आत्मकुंठा का ही नतीजा होती है, इसमें दूसरे की गल्ती खोजने की कोई वजह नहीं.
ReplyDeleteघरेलू हिंशा को खत्म करने के लिए पुरुष और महिला दोनों के सहयोग की जरूरत है तभी इसे ख़त्म किया जा सकता है।
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