पलकें क्यों झुक जाती हैक्यों बुदें झलक जाती है?
कहते ही शब्द बोझिल होता है, मन
फिर खामोश होता है कही कोई अंर्तमन
मीलों तलक लम्बी दूरी..............
देखो आेसं सी छलक आयी है
मेरा दामन उडने लगा बस युं ही
कह दुं क्या तोड के सारे बन्धन?
इन्द्रधनुष सा है मन
संतरगी ख्वाब दुर तक............
चुप क्यू हो ,दिन फिर न होगा
ये उडते बादल खो जायेगे
रहेगा विश्राम यू ही?
तेरे मेरे बीच के भेद
शोर मचायेगे दूर तलक............
__________

गहरी अभिव्यक्ति. शुक्रिया. बस लिखते रहें.
ReplyDelete---
---
हिंदी ब्लोग्स में पहली बार Friends With Benefits - रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]
कृपया वर्ड verification हटा दीजिये.
ReplyDeleteव आपके ब्लॉग प्रोफाइल पर उल्टा तीर आपके ब्लॉग के रूप में (सम्मिलित) प्रर्दशित नहीं हो रहा है, कृपया चेक कीजियेगा)
सुंदर कविता...
ReplyDeleteआपके सुझाव पर प्रसन्न हूँ, कोशिश है कि कुछ लिखा जाये पर कभी शब्द साथ नहीं देते कभी मौसम ही नहीं होता.
वाह....
ReplyDeleteशुरूआती पंक्तियाँ से ही समा बंध जाती है......