Skip to main content

कुछ तो है उसके मेरे दरमियां...........

कुछ तो है
उसके मेरे दरमियां
फासला ही सही
पुकारता है
 मुझे ही 
जब जरूरत पडी
कुछ तो  है जो दिल
धडकता है सांसे रूकती है
कहने को
डर ही सही
जब खत्म हो
सबकुछ
कुछ तो रह जाता
बाकी है
आदत जो छुटती 
नही, याद जो जाती नही।
कुछ तो है उसके मेरे दरमियां
फासला ही सही..........!

Comments

  1. कुछ तो है उसके मेरे दरमियां
    फासला ही सही..........!

    ...बहुत खूब!

    ReplyDelete


  2. कुछ तो है उसके मेरे दरमियां
    फ़ासला ही सही..........!

    कुछ तो है...
    :)

    आदरणीया सुनीता जी
    सुंदर भाव ! अच्छी कविता !
    आभार !

    हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

गूंजते है सन्नाटो में ......!!

अब वो बात कहा, जो कभी थी  गूंजते है सन्नाटो में  कह्कशे जोरो से  थी मुकमल कोशिश बस ....!! गमगीन सी है महफ़िल तेरी  वक्त कभी ठहरता नहीं  इंतजार कितना भी करो  जो आज है वो कल न होगा  जो कल होगा उसका बारे  क्या जान सका कोई कभी .....!!! परदे लाख डाल लो  सच पंख पसारता ही है  फिर टूटते है मासूम दिल  लगती है तोहमते वफ़ा पर  अब यहाँ क्या पायेगा  लाशो और खंडरो में  अतीत को क्या तलाश पायेगा  रहा एक सदमा सही, पर  हुआ यह भी अच्छा ही   चल गया पता अपनों में गैरो का  सभी अपने होते तो गैर  कहा जाते  अब तन्हाई में ख़ुशी का दीप जलता नहीं  बस है सिसकियाँ...और वीरानिया  देखना है वफाएचिराग जलेगा कब तलक   जो था गम अब उसकी भी परवाह नहीं..... l

तुम ही तो हो !!

************ कहाँ जाऊ तेरी यादों से बचकर हर एक जगह बस तू ही है तेरा प्यार तेरा एकरार, तेरी तकरार हरदम मुझमें समाया है मेरी रूह में बस तेरा ही साया है, हमसफर बन साथ निभाना था बीच राह में ही छोड दिया तन्हा मुझकों दिन ढलते ही तेरी यादें मुझे घेर लेती है तू ही है हर जगह ............. हवायें भी यही कहती है क्यो लिया लबों से मेरा नाम जब मुझसे दूर ही जाना था | फिर हमसे न जीया जायेगा तेरे बिन जिन्दगी का जहर  न पीया जायेगा, मासूम है  यह दिल बहुत... हर लम्हा तूझे ही याद करता जायेगा | ##

छलक पड़े.... तो प्रलय बन गए ......!!!

क्यों ? हो गयी शिव तुम्हारी जटाएँ  कमजोर, नहीं सँभाल पाई ........!!! मेरे वेग और प्रचण्डना को  मेरे असहनीय क्रोध के आवेग को  पुरी गर्जना से बह गया क्रोध मेरा  बनकर मासूमो पर भी जलप्रलय  मैं ........ सहती रही, निशब्द देखती रही  रोकते रहे, मेरी राहें अपनी ... पूरी अडचनों से नहीं, बस और नहीं  टूट पड़ा मेरे सब्र का बांध और तोड़  दिए वह सारे बंधन जो अब तक  रुके रहे आंसू के भर कर सरोवर  छलक पड़े तो प्रलय बन गए .... कब तक  मैं रूकी रहती.. सहती रहती  जो थी दो धारायें, वह तीन हो चली है   एक मेरे सब्र की, असीम वेदना की... उस अटूट विश्वास की जो तुम पर था  खंड-खंड है सपने, घरोंदे ,खेत, खलियान  तुम्हारा वो हर निर्माण जो तुमने, जो तुम्हारा नाम ले बनाये थे लोगों ने  गूंज रहा है मेरा नाम ...... कभी डर से तो कभी फ़रियाद से  काश, तुमने मेरा रास्ता न रोका होता  काश ! तुम सुन पाते मरघट सी आवाज  मेरी बीमार कराहें..........!!!! नहीं तुम्हें मेरी, फ़िक्र कहाँ तुम डूबे रहे सोमरस के स्व...