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Showing posts from 2009

नित नवीन सृजन करे.....!

नव वर्ष नव कल्पना  नित नवीन सृजन करे । खिले फुल महके गुलशन  सरस किरणों का स्वागत करे ......................! गुजित भंवरे,गुनगुन स्वर  रिमझिम फूहार की कामना करे  जीवन हो सरल दिशायें दीप्तमान नवीन प्रहर का इन्तजार करें........!   नव वर्ष नव कल्पना  नित नवीन सृजन करे दुख भ्रम की किचिंत छाया न हो सुखों की अल्पविराम रागिनी हो एक नवगीत को साज आवाज दे.... ....................! नव वर्ष नव कल्पना  नित नवीन सृजन करे। 

खुदाया मुझे रहमतो का एक समुन्दर दे दे.................

खुदाया मुझे रहमतो का एक समन्दर दे ............ डूब जाउ मै तेरी इबादत में इतना के कोई मुझे हटा न सके। खुदाया मुझे उजली धुप का आंगन दे दे। रख सकूं हर एक महरूम हो चुके, खुशी से बन्दे को  एक जमी ऎसी जहां नफरत पांव न जमाती हूं सिर्फ तेरी नूर से सरोबार दीवारे हों खिलते हो फूल चट्टानों पर भी मुस्कुराता एक गुलशन दे दे। वो जो देखा था अक्स तेरा हर दीदार में वो नजर दे दे। तेरी इबादत में लूटा दूं अपना सबकुछ तू सिर्फ एक झलक दे दे। खुदाया मुझे रहमतों का एक समुन्दर दे दे...............।

धुंध.............

धुंध- धुंध, धुआ- धुआ.........। जिन्दगी बढती गयी कांरवा चलता गया दूर तक खामोशी और साये आहटे बढती हौले हौले............। रफ्तार जो थमती नही  आसुओ की रौ तन्हाईया शोर मचाती है। सारी परेशानियों का सबब ऎ दिल अब तो संभल बहके कदमों को संभाले चलते रहे बस चलते रहे...........। किसकों पुकारे इस राह पर देखो कितना अंधियारा है रफता रफता वक्त कटता गुम होता उजियारा.........। पुरवाई से कहो यहां न आये तेरा दर यहां से दूर है। दबे पांव मुस्कुराते है हौठं  मुस्कुराहट बैरी है। धुंध-धुंध धुआ -धुआ ............. ...।

एक शाम .......

एक शाम और तुम, दोनो कितने करीब हैं। किसे भूले किसे याद करे दोनो मेरे अपने है........ डुबता सूरज और समन्दर जैसे डुबती हर सांस है एक पल और एक गम दोनो मेरे अपने है............. किसे भूले किसे याद करे फासले बढते जाते है रह नुमा वो नही  सैलाब है हर तरफ अंधियारा घिर आये............ कैरे सवेरे की राह तके किसे भूले किसे याद करे  वक्त बहा ले जाता है............................. गम एक दरिया, मौजो का आना जाना  एक बूत और चट्टान  किसे भुले किसे याद करे.................... .।             _______

उडान

बन्द होती सांसे यूं जीना भी कोई जीना है फडफडाते है पंख छूने को आकाश नये कुतरे पंख कैसे काई उडान भरे........ ! नन्ही चीडियां रश्क तूझसे  मिला खुला आकाश तूझे हवा भी कुछ कहती हौले-हौले......  ! टूटते बांध आशाओं के बन्द हो जाते  दरवाजे खुलने वाले एक मंजिल पा कर मंजिलों से दूरी है...... ! उम्मीद कहती हौले से कानों में तू क्योकर उदास है कोई सवेरा कोई सहर दाखिल होती ही है सफर बोझिल जरूर पर कट तो रहा है....... ! कतरे पंख ही सही उडान तो भर  आस मां देखता है राह तेरी बंधी मुठ्रठी खोल तो जरा फिर न कहना कही रोशनी नही...... ! एक दीप जला तो जरा पग पग धर, धरा नप जाये हौसला कर कदम तो बढा. ...................!        _______

आखिर कब तक सहूंगी.....(.अन्तिम भाग) जागरूकता व बचाव

जब घर में ही हिंसा की शिकार महिलाओं से मैने उनके विचार जानने चाहे किसी भी आम हिन्दुस्तानी औरतों की भांति ही उनके विचार थे यह कहना है आखिर हम आवाज उठाये तो किसके खिलाफ जा उनका पति या परिवार है चाहे वो भाई  हो या अन्य काई पति से जन्मजन्मातंर का रिश्ता होता है  वह उनके खिलाफ कैसे जा सकती है मेरी एक परिचिता जो पेशे से डा0 है खुद कहती है कि कुछ रिश्ते ऎसे होते है जेसे पति ,भाई कोई महिला इनसे लड नही सकती इनकी बातो को सहने के अलावा उनके पास अन्य कोइ रास्ता नही होता।इसलिए विरोध करने से अच्छा या तो अनुसरण करो या फिर सहते रहो। यह तो बात रही सहन करने की,लोगो का भी यह मानना है जो सहते है घर भी उन्ही के बचे रहते है जो नही सह पाते उनके घर बिखर जाते है क्योकि यदि घरेलू हिंसा को रोकने में जब कानून का सहारा लिया जाता है तब दौर शुरू होता है टूटने व बिखरने का काई भी व्यक्ति यह विश्वास नही कर पाता कि पीडित या पीडिता यदि कानून की शरण मे गयी है तो फिर रिश्ते समाप्ति के कगार पर आ पहुँचते है यदि कानून द्वारा रिश्तों  का बरकरार भी रखा गया तो वह आपसी प्रेम का नही दबाव का नतीजा होता है कि रिशता बना है दिल मे प

आखिर कब तक सहूंगी......भाग दो

घरेलू हिंसा जो मुद्दा मैने उल्टा तीर पर उठाया किन्ही अपरिहार्य कारणो की वजह से उस ब्लाग पर नही पोस्ट कर रही हूं मैने आखिर कब तक संहूगी    शीर्षक से लिखी पोस्ट में मैने घरेलू हिसां के कारणो व प्रवृत्तियों पर लिखा जिसमें यह लिखा कि किस तरह घरेलू हिंसा का शिकार व्यक्ति अपने काम पर भी ध्यान नही दे पाता किस तरह घरों में रिश्तों के दौरान हिंसा पनपती है। जहां तक मै समझती हूं कोई रिश्तों तब हिंसक हो उठता है जब उसे यह लगता है दूसरे को उसकी कोई परवाह नही जब पत्नियां पति पर हावी होने की कोशिश करे उसके परिवार की इज्जत न करे व उसे पलट कर जवाब दे पति की अनदेखी आथिर्क तंगी पति या पत्नी का अन्यत्र रूचि लेना। इसी तरह  काई महिला भी परिवार भी तभी हिसंक होती है जब उसकी उपेक्षा हो या उसका व्यवहार ही इस तरह का हो, दंबग होना अपना रोब व परिवार में अपनी तानाशाही चलाना ,किसी भी व्यक्ति के हिंसक होने के पीछे वो मनोवेग भी कारण होते है जिन से वह आये दिन गुजरता है ,सबसे अहम रोल होता है माहौल का जिससे बच्चे ,बूढे ,रूत्री पुरूष सभी प्रभावित होते है। परिवार में यदि काई  कानून का सहारा भी लेता है इसमें भी परिवारों
कुछ भी न कह कर बहुत कुछ कह जाते है सबने सताया जी भर कर, अब तो गमों  को भी शर्म आती है हम पर! आदत जो होती है उसे मिटा ना कैसे कत्ल होता है अरमानों का देखो फितरत दूनिया कितनी मासूम है ! बांध  कर हाथों को क्या तलाश है वो मुकाम कहा रास्ता कहां कुछ भी न कर कह कर बहुत कुछ कह जाते है। हमने बना दिया मूरत को भी इन्सा  है काफी दम खम हममें वो छीन लेता है हर खुशी मुझसे  कैसा  हमसफर है मेरा मार डालता है कहकर, जिन्दगी  दे रहा हूं तूझे !
मासूम चेहरो से, डर लगता है इनकी तल्खी, शोखिया, अदाये होती है कातिलाना चेहर, जो चलाते है नश्तर कैसे कहूं इन नश्तरों से डर लगता है मासुम आंखे दिलों में चलाकिया चलाकियों से, डर लगता है! कत्ल कर जाते है खामोशी से उफ! भी नही जरा, मासूम चेहरो से दूर रहना है इनकी जिदे ,इनकी दीवानगी रो कर हर बात मनवा लेना चेहरों ने गुनाह करवाये है ! आइना दिखा देता है फितरत एक दिन सौ बार जो मुंह छिपाये है ! मासूम चेहरों से डर लगता है ! होती है इनकी बाते निराली हर शह को दूर कर दो चेहरों पर लगे है चेहरे , बन्द कर लिया है आंखो को हां ! मासूम   चेहरों से डर लगता है..... .।
हर रोज एक नया गम दो मुझे गमों  की आदत है आज  ये पास नही..... ....  ! ये क्योकर मुझसे दुर है बस पत्थर ही मारों दोस्तो न ही मैं नूर हूं न  ही सरूर हू! कही उठा कर एक कोने में रख दो दोस्तों किसी की ग़ल्तियाँ और माफ़ी ?  जमी मेरे किस काम की! दूर फलक पर घर बना दो मुझे एक चादर सिला दो आओ गले लगा लू तुम्हें! पल भर भी दुर न हो क्या ढुढता है अब ये दिल साया भी जुदा हो चुका है दोस्तों ! उसके सितम की कोई हद तो होगी,अब तो सितमों शह ढूढंता हू दोस्तों........!               -----------
आज फिर दिल रोया है बार-बार छलछलाते अश्क कह देते हर बात जख़्मी सांस, क्यो फरेब सहता है मन? क्या है रोक लेता है जो कदमों को  बार-बार किस तरह खेलते है लोग दिलों से कर देते है बस चकनाचुर आज फिर गमों का दौर आया है  हसरतों का टूटना ,बिखरना  मरना फिर जी लेना  ख़ुशियों क्यों छीन लेते है लोग क्यों नही समझ पाता कोई मन?    आज फिर दिल टुटा है यहां आवाज़ नही साज़ नही खामोशी ओर बस  घुटन....................              ---------

तुम !

हौले से आकर जगा देते हो मुझे ख्वाब में ही सही,उपस्थित दिखा देते हो तुम तुम जो अरमान थे, तुम जो जीवन थे! आज जो अभिशाप बन गये हो तुम हौले से आकर कानों में कुछ कहते हो तुम बुदबुदाते शब्द बनते जाते कहर! उपर एक आसमां, क्या तलाशतें हो तुम हौले से चैन छीन लेते हो तुम झुठे ही सही ,तसल्ली दे जाते हो तुम ! तुम जो विश्वास थे, छल जो बन गये तुम क्या करे अब परिभाषित, भुल जाओ तुम  प्रेम जो सच था उसे खो  चुके तुम !           _________

क्यों रिश्तों से ठोकरे खा रहे है हम.....?

क्यों रिश्तों से ठोकरे खा रहे है हम किन लोगो मे जीवन गुजारते है हम रिश्ते जो सिर्फ देते है दर्द उन रिश्तों  क्या सोच निभा रहे है हम खुन जो हो जाता है  पानी है  क्षणिक स्वार्थ कर देता है सब होम दुहाई देते रहे बस, क्या मेरा क्या पराया क्यो रिश्तों को तिथियों में बांध देते है हम झलकता जो प्रेम आंखों से नफरत कैसे सह पाते हम क्यों रिश्तों को रो लेते है हम  इन्सानों की इस दुनिया में  लेन देन कर बना लेते फरेब की एक दुनिया दुनियादारी का नाम ले रिश्तों को तोल लेते हम  क्यों रिश्तों के नाम पर ठोकरे खा रहे है हम जो आज है वो कल न होगा  तकलीफों को सहन कर क्यों जिये जा रहे है हम।                 ____________

कुछ कहता दिया बाती संग

कुछ कहता है दिया बाती से कुछ कहती बाती दिये से ! दोनो ही जलते तपते है साथ जलते साथ बुझते  अनबुझ एक पहेली से   दिया रोशन बाती संग बाती रोशन दिये संग ! अलग हो जैसे अंधेरे से  निश्वान जैसे  प्राण बिन एक साथ जलना नियती इनकी  न करो अलग दिये संग बाती को  दिया झिलमिल बाती संग झिलमिल दीपकतार! साथ दोनो यूं दमकते  लगते  टिम टिम जुगनू से  मुस्कुराता मानो देख बाती को  दिया है मानो बाती रंग न करो अलग दिये संग बाती को !       ____________

एक ख्याल हुं मै ।

कोई मुझसे कहे कौन हुं मै, एक ख्याल हुं बस ख्यालो का काई नाम नही़, नही कोई रंग रूप के बस ख्याल हूं मै कभी आना कभी जाना, है फितरत इसकी ख्याल का कोई नाम नही, नही रंग रूप  के बस एक ख्याल हुं मै कोई मुझसे कहे तेरी चाहत क्या है बस दफन होना  न पूछे कोई मेरा हाल क्या है के बस ख्याल हूं मै झूठ फरेब की इस दूनिया मै कोई हिमाकत करू ऎसी नही औकात मेरी कोई मुझसे पुछे कहां है घर मेरा  वो बसेरा ठुकरा दिया हमने के बस ख्याल हूं मै। ख्यालों का कोई पडाव नही टुटना बिखरना जन्म उनका फिर क्यू शिकायत  ख्याल का कोई नाम नही , नही रंग रूप के बस एक ख्याल हूं मै जाने अन्जाने ही आ जाऊ दिल में तो अफसोस न करना  इतनी जल्दी मिट न पायेगी हस्ती मेरी रह रह कर कचोटना है आदत मेरी के बस एक  ख्याल हुं मै बन्द कर लो अपनी आंखे हाजिर मुझे पाओगे तुम कहो और मै चला जाऊ तुम्हारे जहन के सिवा कहां है बसेरा मेरा, कह दो चला जाउगा गल्ती से फिर आ जाऊ तो मुझे कुछ न कहना के बस एक ख्याल हुं मै।                                      ________________

बेझिझक सी तरन्नुम में यह दौर कैसा है....

बेझिझक सी तरन्नुम में ये दौर कैसा है क्या सोचे हम क्या कहे अब सब कुछ फीका है। मायुस होता है मन है बेचैन भी देख खाली हाथों को कितने व्याकुल है हम बेबसी को क्या दूसरा नाम दूं जो नही अपना उसे कैसे अपना कहु क्या सोचे क्या कहे हम अब सब कुछ फीका है । आरजू क्या चाहती है देख ये पागलपन न कहो उसको कुछ भी वो एक भंवरा है उसकी आंखो की चमक को क्या नाम दे हम लुटाने बैठा है जो अपनी हस्ती आज रोक लो उसको बर्बादियों के कहर से क्या सोचे क्या कहे हम अब सबकुछ फीका है।

पलकें क्यों झुक जाती है?

पलकें क्यों झुक जाती है क्यों बुदें झलक जाती है? कहते ही शब्द बोझिल होता है, मन फिर खामोश होता है कही कोई अंर्तमन मीलों तलक लम्बी दूरी.............. देखो आेसं सी छलक आयी है मेरा दामन उडने लगा बस युं ही कह दुं क्या तोड के सारे बन्धन? इन्द्रधनुष सा है मन संतरगी ख्वाब दुर तक............ चुप क्यू हो ,दिन फिर न होगा ये उडते बादल खो जायेगे रहेगा विश्राम यू ही? तेरे मेरे बीच के भेद शोर मचायेगे दूर तलक............      __________
          महकती रहों तुम ,नन्ही कली मेरे बगिया की.....                  युं जैसे महकती है रात की रानी           तुम मेरे जीवन की आधार हो           तुम बिन थी कितनी अधूरी!                    महकती रहों तुम ,नन्ही कली मेरे बगिया की.....                                                                                  महकती रहों तुम नन्ही कली मेरी बगिया की........ जैसा मैने सोचा तुम हो नितांत वैसी ही तुम्हारा हंसना, जैसे जान हो मेरी तुम्हारा रोना, लगता ले लेगा प्राण मेरे! महकती रहो तुम,नन्ही कली मेरी बगिया की....... जीवन था जो रसहीन तुमने अपने कदमों की आहट से मेरे हर क्षण को कर दिया जीवन्त मानो! महकती रहो तुम,नन्ही कली मेरी बगिया की.......               ____________