घना कोहरा
बेचैन मन
जाने किसकी
तलाश में
फिर रहा दर ब दर
दिशा या दिशा भ्रम
कहां ले जायेगा
यह पागलपन
सब तरफ ढूंढा
फिर भी
सकूंन कहां
उदासी का आलम
अब मेरा इम्तहां
भी क्या लेगा
मै इस उम्मीद पर
डूबा कि बचा लेगा
दामन ओढ फरेब
का मेरा ही
रहबर निकला
जिसकी थी तलाश
उसे ही नदारद पाया ।
वह खो जायेगा
गुमनामियों में
फिर कौन
उसका अलख जगायेगा।
बहुत उदासी है।
ReplyDeleteनव वर्ष आया है तो नई आशाएं भी साथ लाया है।
शुभकामनायें।
बैचैन मन की तलाश जारी रहती है सदियों तक ...
ReplyDelete