मन से बोझिल है यह जहां सारा
चंचल कितना है यह मन.....
पल उडे ,पक्षी सी उडान
पल में ठहरे यूं सागर सा
मन से चलता ,यह संसार
लडता है दिमाग .........
मन सा बावरा है क्या कोई
घबराता कभी तो कभी होता बचैन
कभी प्रफुल्लित तो, नही कही चिन्ता........
कभी मरघट तो कभी महफिल.........
मन सा पागल कौन ।
लिखते कवि न जाने कितनी रचना
मन की थाह लेना न आसान
है यह रहस्य अनबूक्ष पहेली सा
मन को पा सब को पा लो
नही तो कौन जाने इस जग, जीवन में
मन के मारो ने किये बडे बडे काम............।
चंचल कितना है यह मन.....
पल उडे ,पक्षी सी उडान
पल में ठहरे यूं सागर सा
मन से चलता ,यह संसार
लडता है दिमाग .........
मन सा बावरा है क्या कोई
घबराता कभी तो कभी होता बचैन
कभी प्रफुल्लित तो, नही कही चिन्ता........
कभी मरघट तो कभी महफिल.........
मन सा पागल कौन ।
लिखते कवि न जाने कितनी रचना
मन की थाह लेना न आसान
है यह रहस्य अनबूक्ष पहेली सा
मन को पा सब को पा लो
नही तो कौन जाने इस जग, जीवन में
मन के मारो ने किये बडे बडे काम............।
सच कहा , मन बड़ा चलायमान है ।
ReplyDeleteयदि इसे बस में कर लें तो इंसान का दर्ज़ा ऊपर उठ जाता है ।
मन के वशीभूत न हो कर मन को वशीभूत करना चाहिए ..
ReplyDeleteमन के भटकने से ही रामयण और महाभारत दोनों हो गया..
ReplyDeleteमन की चंचलता का अच्छा वर्णन
वाह !
ReplyDeleteइस कविता का तो जवाब नहीं !
bas in duniya mein ek ye kaam hi aasaan nahi है ....
ReplyDeleteman ko baandh liya to jeevan pa liya ... अच्छी rachna है ..
मैं उत्तराखंड से हूँ और अभी मैं डेल्ही हूँ मैं आपको ब्लॉग देखा मुझे बहुत अछा लगा मैं इंटर नेट पर रहता हूँ पर उत्तराखंड के 10 % लोग मुझे
ReplyDeleteनेट पर मिलते है