तुम हो हम है फिर भी साथ चलता है फ़ासला
सवाल बस सवाल बीच में एक भंवर सा
डूबते उतरते तूफानों से घिर जाते है
फडकती आंखे ,डर अन्जाना सा
क्यों कश्ती को साहिल की दरकार नही
शुष्क होठ, शबनम का कतरा नही
मन करता उड चलुं आसमानों तक
कैसे आसमां तो बहुत दूर है
दिल तक जो पहूचं वो आवाज कहां है।
किसको तलाशता है तूं प्यार एक फसाना है
खामोशी से राह नही मिलती
चीखने से पुकार नही बनती
सवाल बस सवाल बीच में एक भंवर सा
तुम हो हम है फिर भी साथ चलता है फ़ासला.....................।
सवाल बस सवाल बीच में एक भंवर सा
डूबते उतरते तूफानों से घिर जाते है
फडकती आंखे ,डर अन्जाना सा
क्यों कश्ती को साहिल की दरकार नही
शुष्क होठ, शबनम का कतरा नही
मन करता उड चलुं आसमानों तक
कैसे आसमां तो बहुत दूर है
दिल तक जो पहूचं वो आवाज कहां है।
किसको तलाशता है तूं प्यार एक फसाना है
खामोशी से राह नही मिलती
चीखने से पुकार नही बनती
सवाल बस सवाल बीच में एक भंवर सा
तुम हो हम है फिर भी साथ चलता है फ़ासला.....................।
सरलता और सहजता का अद्भुत सम्मिश्रण बरबस मन को आकृष्ट करता है।
ReplyDeleteतुम हो हम है फिर भी साथ चलता है फ़ासला.....................।
ReplyDeleteअच्छी कशमकश है ।
गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें।
किसको तलाशता है तूं प्यार एक फसाना है
ReplyDeleteखामोशी से राह नही मिलती
चीखने से पुकार नही बनती
सवाल बस सवाल बीच में एक भंवर सा
तुम हो हम है फिर भी साथ चलता है फ़ासला....................
कभी कभी जीवन भर साथ चलते रहते हैं पर फांसले बने रहते हैं ........ भंवर जैसे उलझे मन की पीड़ा से निकली रचना .........
सुगढ़ अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteबहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में
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