कुछ कहता है दिया बाती से कुछ कहती बाती दिये से !
दोनो ही जलते तपते है
साथ जलते साथ बुझते
अलग हो जैसे अंधेरे से
निश्वान जैसे प्राण बिन
एक साथ जलना नियती इनकी
न करो अलग दिये संग बाती को
दिया झिलमिल बाती संग झिलमिल दीपकतार!
साथ दोनो यूं दमकते
लगते टिम टिम जुगनू से
मुस्कुराता मानो देख बाती को
दिया है मानो बाती रंग
न करो अलग दिये संग बाती को !
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दोनो ही जलते तपते है
साथ जलते साथ बुझते
अनबुझ एक पहेली से
दिया रोशन बाती संग बाती रोशन दिये संग !अलग हो जैसे अंधेरे से
निश्वान जैसे प्राण बिन
एक साथ जलना नियती इनकी
न करो अलग दिये संग बाती को
दिया झिलमिल बाती संग झिलमिल दीपकतार!
साथ दोनो यूं दमकते
लगते टिम टिम जुगनू से
मुस्कुराता मानो देख बाती को
दिया है मानो बाती रंग
न करो अलग दिये संग बाती को !
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दिया और बाती का यह संगम ही प्रकाश का जनक है । आपको दिवाली की शुभकामनायें ।
ReplyDeleteमुझे दुष्यंत जी का शेर याद आ गया " एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों /इस दिये मे तेल से भीगी हुई बाती तो है ।
ReplyDeleteशरद जी,
ReplyDeleteमुझे आपका ब्लाग पुरात्ववेत्ता बहुत अच्छा लगता है मुझे खुद भी पुरानी विरासतों सभ्यताओ का समझने जानने का शौक है ऎसी ही कोशिशे मैने दैनिक जागरण मे लेखन के दौरान की थी मेरी आने वाली पोस्ट भी कुछ ऎसे ही तथ्यों को उजागर करने का प्रयास भर है। नजर डालते रहिएगा साथ ही सुझाव भी।......
http://sunitakhatri.blogspot.com
बहुत अच्छा, प्रत्येक पंक्तियां कुछ कह रही हैं, झक्कास। अच्छा लिखा है।
ReplyDeleteसुनील पाण्डेय
इलाहाबाद
09953090154