सफर में चलते चलते
टकरा गयी जिन्दगी
उसने पूछा कौन हो तुम
मैने कहा ख्वाब,ढूंढ रही हूं मंजिल
वीरानों में सावन तलाशती हूं
घनघोर घटा में
गरजती बिजलियों से डरती
नीड तलाशती हूं
दूर तक जायेगा यह सफर
या यही बदल देगा रास्ता
अनजान हूं अभी राहों से
जिन्दगी खामोश रही
सहम गयी मेरे सवालों से
कौन यह , जो मुझे मांग रही है
क्या जिन्दगी हमेशा साथ देती है.................!
बहुत सुन्दर ! बहुत ही खूबसूरत भावपूर्ण रचना ! बहुत खूब !
ReplyDeleteकविता के भाव एवं शब्द का समावेश बहुत ही प्रशंसनीय है
ReplyDeleteहर शब्द शब्द की अपनी अपनी पहचान बहुत खूब
बहुत खूब
मेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह